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तीर्थंकर चरित्र
कैसे मारे गए ? और ये सुग्रीव, भामण्डलादि और में स्वयं इन रामभद्रजी पर इतना स्नेह क्यों रखते हैं ? भ्रातृ- घातक कुलविध्वंशक के प्रति भी मेरी इतनी भक्ति क्यों है ? हम सब का पूर्वजन्म का परस्पर सम्बन्ध है क्या ?"
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सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् ने कहा; --
"हाँ, सुग्रीव ! पूर्वजन्म का सम्बन्ध है । इस दक्षिण भारत में क्षेमपुर नगर में नयदत्त नाम का एक व्यापारी था । उसकी सुनन्दा स्त्री से धनदत्त और वसुदत्त नाम के दो पुत्र थे । उन दोनों पुत्रों की याज्ञवल्क्य नाम के ब्राह्मण से मित्रता हो गई । उसी नगर में सागरदत्त नाम का एक व्यापारी रहता था । उसके गुणधर नाम का पुत्र और गुणवती नाम की पुत्री थी। सागरदत्त ने अपनी गुणवती पुत्री का सम्बन्ध नयदत्त के पुत्र धनदत्त. से कर दिया । किन्तु उसी नगरी का धनाढ्य व्यापारी श्रीकान्त, गुणवती पर मोहित था । उसने गुप्तरूप से गुणवती की माता रत्नवती को धन का लोभ दे कर अपने पक्ष में कर लिया । रत्नवती ने गुप्तरूप पुत्री का सम्बन्ध श्रीकान्त से स्वीकार कर लिया और प्रच्छन्न रूप से विवाह करने की चेष्टा करने लगी । इनके इस गुप्त षड्यन्त्र का पता वसुदत्त के मित्र याज्ञवल्क्य शर्मा को लग गया। उसने अपने मित्र को सूचना दी । वसुदत्त को यह बात सुन कर क्रोध चढ़ा । उसने रात के समय श्रीकान्त के घर में घुसकर श्रीकान्त पर घातक प्रहार किया। श्रीधर ने भी सावधान हो कर वसुदत्त पर घातक प्रहार किया । दोनों लड़ कर वहीं मर गए । वे दोनों मर कर विध्याचल के वन में मृग हुए। गुणवती भी कुमारी ही मृत्यु पा कर उसी वन में मृगी हुई । उस मृगी को पाने के लिए दोनों मृग लड़ कर मर गए । इस प्रकार उनकी वैर-परम्परा तथा भव- परम्परा चलती रही और जन्म-मरण करते रहे ।
वसुदत्त का भाई धनदत्त, भाई के वध से शोकाकुल हो कर घर से निकल गया और इधर-उधर भटकने लगा । एकबार भटकता हुआ और क्षुधा से पीड़ित, रात के समय साधुओं के स्थान पर चला गया और उन से भोजन माँगने लगा । मुनिजी ने कहा
"भाई ! हम तो दिन को भी आहार का संग्रह नहीं रखते, तब रात को तो रखें ही कैसे ? रात का भोजन निषिद्ध है। भोजन में बारीक जीव आ जाय तो दिखाई नहीं देते । तुम्हें रात का खाना बन्द कर देना चाहिए । इससे तुम्हें लाभ होगा ।"
इस बोध का धनदत्त पर प्रभाव हुआ । उसने मुनिवर से श्रावक के व्रत ग्रहण किये । व्रत का पालन करता हुआ वह मृत्यु पा कर सौधर्म-देवलोक में देव
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