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रावण सीता और लक्ष्मणादि का पूर्व सम्बन्ध
जयभूषणजी पधारे हैं । उन्हें यहीं केवलज्ञान- केवलदर्शन की प्राप्ति हुई है । देव और इन्द्र, केवल महोत्सव कर रहे हैं । महादेवी भी उन्हीं के पास दीक्षित हुई है । आपका व हम सब का कर्त्तव्य है कि हम भी केवल महोत्सव करें । महाव्रतधारिणी महासती सीताजी भी वहीं है । हम वहां चल कर उनके दर्शन करेंगे ।"
लक्ष्मण की बात सुन कर राम का शोकावेग मिटा । उन्होंने कहा - " बन्धु ! महासती हमें छोड़ कर चली गई । उसने मोह-ममता को नष्ट कर दिया। अब उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता । उसे लौटाने का विचार करना भी पाप है । ठीक है, अच्छा ही किया है उसने । यह संसार त्यागने योग्य ही है । चलो, अपन सब वीतरागी महामुनि के समवसरण में चलें ।"
राम का भविष्य x
राम का भविष्य
धर्मोपदेश सुन कर रामभद्रजी ने सर्वज्ञ भगवान् से पूछा
'भगवन् ! मैं भव्य हूँ या अभव्य ?"
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-- " राम ! तुम मात्र भव्य ही नहीं, किन्तु इसी जन्म मैं वीतराग सर्वज्ञ बन कर मुक्ति प्राप्त करोगे ।"
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--" भगवन् ! इसी भव में मुक्ति ? यह तो असंभव लगती है— प्रभो ! मुक्ति की साधना सर्व त्यागी होने पर होती है । मैं और सब का त्याग कर सकता हूँ, किन्तु लक्ष्मण को नहीं छोड़ सकता, फिर मेरी मुक्ति किस प्रकार हो सकेगी ?”
“भद्र ! तुम अभी त्यागी नहीं हो सकते । अभी तुम्हें राज्यऋद्धि और बलदेव पद का भोग करना शेष है । जब वे भोगकर्म समाप्त हो जावेंगे, तब तुम निःसंग हो कर मुक्ति प्राप्त करोगे ।"
रावण सीता और लक्ष्मणादि का पूर्व सम्बन्ध
विभीषणजी ने सर्वज्ञ भगवान् से पूछा
"स्वामिन् ! मेरे ज्येष्ठ-बन्धु दशाननजी न्याय-नीति सम्पन्न होते हुए भी उन्होंने सीता का अनीतिपूर्वक हरण करने का दुष्कार्य क्यों किया ? और वे लक्ष्मणजी के हाथों
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