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________________ तीर्थकर चरित्र २५ पोष्य--पोषक । जिनका भरण-पोषण करना आवश्यक हैं, उनका (माता, पिता, संतान, बान्धव कुटुम्बी और अन्य आश्रित तथा पशु आदि) पोषण यथासमय करना उनके कष्टों को दूर करना, उनकी सुख-सुविधा का ध्यान रखना और रक्षा करना गृहस्थ का कर्तव्य है। २६ दीर्घदर्शी । आगे पर होने वाले हानि-लाभ का पहले से ही विचार कर के कार्य करने वाला हो । बिना विचारे काम करने से भविष्य में विपरीत परिणाम निकलता है और दुःखी होना पड़ता है। २७ विशेषज्ञ । वस्तु के स्वरूप और गुण-दोष का विशेषरूप से जानने वाला । जो विशेषज्ञ नहीं होता, वह धर्म के बहाने अधर्म को भी अपना लेता है और विशेषज्ञ ऐसे धोखे से बच जाता है। २८ कृतज्ञ । किसी के द्वारा अपना हित हुआ हो, तो उसे याद रख कर उपकार मानने वाला और समय पर उस उपकार का बदला चुकाने वाला हो। कृतज्ञ की आत्मा में ही विशेष गुणों की वृद्धि होती है। २९ लोकप्रिय । विनय एवं सेवा के द्वारा जनता का प्रिय होने वाला । लोकप्रिय व्यक्ति के प्रति जनता की शुभ भावना होती है। इससे जनता की ओर से किसी प्रकार की विपरीतता उपस्थित हो कर क्लेश उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती, वरन् आवश्यकता उपस्थित होने पर सहायता प्राप्त होती है। ३० लज्जावान् । लज्जा एक ऐसा गुण है, जो कई प्रकार के कुकृत्य से रोकती है। जिस व्यक्ति में लोक-लाज होती है, वह बुरे कार्यों से बचता है । यदि कभी मन में बुरे भाव उत्पन्न हो जायँ, तो लज्जा गुण, उस भावना को वहीं समाप्त कर देता है, जिससे वह भावना कार्य रूप में प्रवृत्त नहीं हो सकती। ३१ दयालु । दुःखी प्राणियों के दुःख को देख कर जिसके हृदय में दया के भाव उत्पन्न होते हों और जो यथाशक्ति दुःख दूर करने का प्रयत्न करता हो । दयाभाव, मनुष्य के हृदय में धर्म की स्थापना को सरल बना देता है। दयालु हृदय में सम्यक्त्व विरति आदि गुण प्रकट होते हैं। ३२ सौम्य । शान्त स्वभाव वाला । उग्रता एवं क्रूरता से रहित । उग्रता एवं क्रूरता से अनेक प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं । जीवन में अशान्ति उत्पन्न हो जाती है । इसलिए धर्म प्राप्ति के लिए सौम्यता का गुण होना आवश्यक है। ३३ परोपकार तत्पर । जिससे दूसरों का हित हो, ऐसे सेवा, सहायता, अन्न, वस्त्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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