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________________ तीर्थकर चरित्र चिन्तामग्न हो गए और तत्काल पुंडरीकपुर पहुँच कर सीता के समीप आए । भाई को देख कर सीता की छाती भर आई। उसने रोते हुए कहा "भाई ! मैं परित्यक्ता हूँ। मेरी इस दशा को सहन नहीं कर सकने के कारण तुम्हारे दोनों भानेज, सेना ले कर अयोध्या गये है। क्या होगा ? इस अनिष्ट को रोकने का प्रयत्न करो।" " बहिन ! तुम्हारा त्याग कर के रामभद्रजी ने हीन, उग्र एवं अन्यायी वृत्ति का परिचय दिया है । उन्होंने एक महान् दुःसाहस किया है । अब पुत्रों का वध कर के दूसरा दुःसाहस नहीं करें, इसका उपाय करना है । क्योंकि वे यह नहीं जानते कि ये दोनों कुमार मेरे ही पुत्र हैं। इसलिए हमें तत्काल वहाँ पहुँच जाना है।" भामण्डल सीता को अपने विमान में बिठा कर चले और तत्काल लवणांकुश के सैन्यशिविर में पहुँचे । दोनों कुमारों ने माता को प्रणाम किया। सीता ने भामण्डल का परिचय दिया। दोनों कुमारों ने अपने सगे मामा के चरणों में प्रणाम किया। भामण्डल ने भानजों को छाती से लगाते हुए हर्षोन्माद में कहा-- "मेरी बहिन वीरपत्नी तो थी ही, किन्तु अब तुम युगलवीरों ने, वीरमाता का गौरव भी दिया, यह जान कर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ। तुम्हारे जैसे पुत्रों के कारण वे सचमुच धन्य हो गई। किंतु तुम जो साहस कर रहे हो, वह विषाद एवं शोकवर्द्धक है । तुम युद्ध कर के अपनी माता की और मेरी प्रसन्नता नष्ट करना चाहते हो । हमारी इच्छा है कि तुम युद्ध मत करो।". "पूज्य मातुल ! आप स्नेहवश भीरु हो रहे हैं। माताजी भी ऐसा ही सोचती हैं । हम जानते हैं कि पिताश्री और काकाजी से युद्ध करने में कोई समर्थ नहीं, किन्तु अब युद्ध छोड़ कर पीछे हट जाना तो लज्जाजनक तथा कुल को कलंकित करना है । यह कैसे उचित हो सकता है।" इधर ये बातें हो रही थी, उधर दोनों ओर की सेना में युद्ध छिड़ गया। यह जान कर दोनों कुमार वहाँ से चल कर युद्धस्थल पर आये और वीरतापूर्वक युद्ध करने लगे भामण्डल भी युद्धभूमि में आये उनका उद्देश्य सुग्रीवादि विद्याधरों से, लवणांकुश की और उसकी सेना की रक्षा करना था। जब सुग्रीव की दृष्टि भामण्डलजी पर पड़ी, तो वे चकित रह गए । उन्होंने पूछा"भामण्डलजी ! आप शत्रुपक्ष में कैसे चले गये ? ये दोनों युवक कौन हैं ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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