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________________ लवणांकुश का का राम-लक्ष्मण से युद्ध २१३ - -- - -- अंकुश--मना करते हुए भी-~आए । दूसरे दिन भयंकर युद्ध हुआ । इस युद्ध में पृथु ने वज्रजघ की सेना को छिन्नभिन्न कर दिया। यह देख कर लवण और अंकुश क्रोधित हो गए और शस्त्र ले कर उन्मत्त हाथी के समान सेना पर झपटे । उनके भयंकर, सतत एवं असह्य प्रहार को पृथु की सेना सहन नहीं कर सकी और भाग गई । पृथु भी युद्धक्षेत्र से हट गया । उसे खिसकते देख कर लवण और अंकुश ने कहा--"आप तो उत्तम और प्रसिद्ध वंश वाले हैं, फिर हम अज्ञात-कुल वालों से डर कर, कायर के समान भाग क्यों रहे हैं ?" ये वचन सुनते ही पृथु राजा लौटा और बोला-- ___ "तुम्हारे पराक्रम ने तुम्हारे वंश का परिचय दे दिया। अब मैं वज्रजंघ नरेश की मांग स्वीकार कर अपनी पुत्री देने में अपना और पुत्री का अहोभाग्य मानता हूँ।" राजा ने अपनी कनकमाला पुत्री और अन्य राजाओं की पुत्रियों का लग्न अंकुश के साथ कर दिया और दोनों नरेशों के परस्पर सन्धी हो गई तथा मैत्री सम्बन्ध जुड़ गया। लवणांकुश का राम-लक्ष्मण से युद्ध वज्रजंघ नरेश और उनकी सेना, पृथ्वीपुर ही रह कर पृथु नरेश का प्रेमपूर्ण आतिथ्य स्वीकार कर रहे थे । एक दिन अचानक वहाँ नारदजी आए । वज्रजंघ नरेश ने नारदजी का आदर-सत्कार किया। साथ के सभी राजाओं ने भी नारदजी को सम्मान दिया। कुशल क्षेम पृच्छा के बाद वज्रजंघ ने नारदजी से पूछा--- __ " महात्मन् ! आप तो सर्वत्र विचरण करते रहते हैं और भरतक्षेत्र के सभी राजघरानों में आपकी पहुँच है। आप सभी की बाह्य और आभ्यतर स्थिति जानते हैं । हमारे सामने एक समस्या खड़ी है। ये दोनों युवक--लवण और अंकुश, किस कुल में उत्पन्न हुए ? इनके सौभाग्यशाली पिता कौन हैं ?'' "राजन् ! इन राजकुमारों की उत्पत्ति उस सर्वोत्तम वंश में हुई है--जिसमें आदि तीर्थकर भ, ऋषभदेवजी और उनके पुत्र प्रथम चक्रवर्ती भरतजी हुए । इनके वंश में कई चक्रवर्ती नरेश हो गए। उसी उच्चत्तम कुल में दशरथ नरेश के ज्येष्ठ-पुत्र रामभद्रजी हैं । वे अयोध्यापति हैं । उन्हीं मर्यादा-पुरुष की लक्ष्मी के समान गुणों वाली सीता महारानी के ये दोनों अंगजात हैं। लोकनिन्दा के भय से रामभद्रजी ने सीता का, गर्भावस्था की दशा में ही त्याग कर के वनवास दिया था। ये दोनों कुमार उन्हीं के हैं । देखो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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