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________________ २१२ तीर्थकर चरित्र था। राजा और रानी उसका प्रेमपूर्वक पालन कर रहे थे। गर्भकाल पूर्ण होने पर सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया। नरेश ने उनका जन्मोत्सव, अपने खुद के पुत्र-जन्म से भी अधिक उत्साहपूर्वक किया और नामकरण के समय उनके नाम क्रमशः 'अनंगलवण' और " मदनांकुश' दिये । धात्रियों द्वारा सेवित एवं लालित वे दोनों कुमार, अश्विनीकुमारों के समान बढ़ने लगे । यथासमय कलाभ्यास एवं विद्याध्ययन कर प्रवीण हुए। वे वज्रजंघ नरेश के हृदय को आनन्दकारी लगने लगे। एक बार सिद्धार्थ नामक एक अणुव्रतधारी सिद्धपुत्र, आकाश-गमन करता हुआ भिक्षा के लिए सीता के आवास में आया। सीता ने उन्हें आहार-दान दिया और विहार सम्बन्धी सुख-शांति पूछी। सिद्धपुत्र ने सीता का परिचय पूछा । सीता ने अपना पूरा वृत्तांत सुना दिया। सिद्धपुत्र विद्याबल, मन्त्रबल एवं आगमबल से समृद्ध था। उसने अपने अष्टांग निमित्त से जान कर सीता से कहा ___ "तुम व्यर्थ चिन्ता क्यों कर रही हो। तुम्हारे ये लवण और अंकुश--दोनों पुत्र, राम-लक्ष्मण की दूसरी जोड़ी के समान हैं । श्रेष्ठ लक्षण वाले हैं । थोड़े ही दिनों में तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।" इस प्रकार भविष्य कथन सुन कर और सिद्धपुत्र को योग्य अध्यापक समझ कर सोता ने उसे ठहराया और पुत्रों को शिक्षा देने का अनुरोध किया । सिद्धपुत्र ने उन दोनों को ऐसी कला सिखाई कि जिससे देवों के लिए भी दुर्जय हो गए। समस्त कला सीख कर वे यौवनवय को प्राप्त हुए । वे कामदेव के समान रूपवान दिखाई देने लगे। लव-कुश की प्रथम विजय वज्रजंघ नरेश ने अपनी शशिचूला पुत्री और अन्य बत्तीस कन्याओं का लग्न, लवण के साथ किया और अंकुश के लिए, पृथ्वीपुर नरेश पृथु की कनकमाला पुत्री से सम्बन्ध करने का सन्देश भेजा । किन्तु पृथुनरेश ने यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि"जिनके वंश का पता नहीं, उन्हें पुत्री नहीं दी जा सकती।" राजा पृथु का उत्तर, वज्रजंघ नरेश को अपमानकारक लगा। उन्होंने पृथु पर चढ़ाई कर दी और युद्ध के प्रारम्भ में ही, पृथु राजा के मित्र, राजा व्याघ्ररथ को पकड़ कर बन्दी बना लिया। पृथु राजा ने अपने मित्र पोतनपुर नरेश को सहायतार्थ आमन्त्रण दिया । उनके सम्मिलित होने पर वज्रजंघ ने भी अपने पुत्रों को बुलाया। उनके साथ लवण और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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