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सीता के युगल- पुत्रों का जन्म
विश्वास होते हुए भी दुर्जनों द्वारा की हुई निन्दा से भयभीत हो कर मेरा त्याग किया, उसी प्रकार मिथ्यादृष्टियों के वचनों में आ कर, कभी परमोत्तम जिनधर्म का त्याग नहीं कर बैठें।'
इतना कह कर सीता मूच्छित हो गई थी । पुनः चैतन्य प्राप्त कर वे आपकी चिन्ता करने लगी और कहने लगी--" मेरे बिना स्वामी को शांति कैसे मिलेगी । हाय, उनकी अशांति एवं दुःख कैसे दूर होगा ?" इस प्रकार चिन्ता करती हुई पुनः मूच्छित हो गई । " सेनापति से सीता का सन्देश - वेदना पूर्ण उद्गार सुन कर एवं भीषण विपत्ति की कल्पना के आघात से, राम भी मूच्छित हो कर गिर गए। उनकी मूर्च्छा के समाचार सुनते ही लक्ष्मणजी तत्काल दौड़े आये और चन्दन के शीतल जल का सिंचन कर उन्हें सावधान किया । सावधान होते ही राम बोले ; --
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'कहाँ है वह महासती, जिसका दुर्जनों के वचनों में आ कर मैंने त्याग किया ? अब में उसे कहाँ पा सकूंगा ?"
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'स्वामिन् ! आप चिन्ता नहीं करें । वह महासती अपने धर्म के प्रभाव से वन में भी सुरक्षित होगी । इसलिए आप तत्काल विमान ले कर पधारें, ऐसा नहीं हो कि विलम्ब करने पर विरह वेदना सहन नहीं करके वे स्वयं प्राण त्याग दें। आप सेनापति के साथ स्वयं पधारें और उन्हें ले आवें ।"
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राम, कृतांतवदन सेनापति और अन्य विद्याधरों सहित विमान में बैठ कर सीता की खोज में चल दिये । वे वन में बहुत भटके, वृक्षों की झाड़ियाँ, पर्वत, गुफाएँ और जलाशयों में खोज करते फिरे । किंतु सीता का कहीं पता नहीं लगा । अन्त में निराश हो कर अयोध्या लौट आए और सीता का देहावसान होना मान कर मृत्यु के बाद होने दाला लौकिक कार्य किया । किन्तु राम की दृष्टि में, वाणी में और हृदय में सीता ही बसी हुई थी । वे उसे भूल नहीं सके और दुःख, शोक एवं चिंता में समय बिताने लगे ।
अब नागरिकजन भी सीता के शील की प्रशंसा और राम के न्याय की निन्दा कर रहे थे ।
सीता के युगल - पुत्रों का जन्म
सीता, वज्रजंघ नरेश के यहां रह कर, जीवन तथा गर्भ का पालन कर रही थी । अपनी विरह वेदना एवं निर्वासित जीवन की टीस के अतिरिक्त वहां उसे कोई कष्ट नहीं
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