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________________ सीता वज्रजंघ नरेश के भवन में फल तो मुझे भोगना ही पड़ेगा । मेरे मन में चिन्ता है --स्वामी के दुःख की ओर गर्भस्थ जीव की । इसके लिये मुझे उपाय करना ही पड़ेगा । परन्तु मैं करूँ भी क्या ? कहाँ जाऊँ ?" उसकी बुद्धि कुंठित हो गई । वह भाग्य के भरोसे एक ओर चल दी । चलतेचलते दुःख के आवेग से आँखें भर आती और ठोकर लग कर गिर पड़ती । फिर भी वह आगे बढ़ती ही गई । अचानक उसकी दृष्टि, सामने से आते हुए मनुष्यों पर पड़ी । एक विशाल सेना उधर से आ रही थी । शस्त्र - सज्ज जन-समूह को देख कर सीता सोच में पड़ गई । वह भय को दूर कर नमस्कार मन्त्र का स्मरण करने लगी । निकट आये हुए सैनिकों की दृष्टि सीता पर पड़ी। उन्होंने सोचा- 'यह देवांगना जैसी स्त्री कौन है ? इस वन में अकेली क्यों है ? उस समय सीता पुनः आर्त हो कर रुदन करने लगी थी । सैनिकों ने एक देवांगना जंसी महिला के एकाकी रुदन करने की बात राजा से कही और यह भी कहा कि 'वह महिला गर्भवती दिखाई देती है ।" राजा, सीता के निकट आया । राजा को अपने निकट आता हुआ देख कर सीता घबड़ाई । उसने समझा यह कोई चोर या डाकू होगा । अपने सभी आभूषण उतार कर सीता ने राजा के सामने रख दिये । सीता को भयभीत एवं गहने समर्पित करती देख कर राजा बोला; - "बहिन ! तुम निर्भय बनो और इन आभूषणों को पुनः धारण कर लो। तुम यहाँ क्यों आई ? क्या कोई दुष्ट तुम्हारा हरण कर लाया, या तुम्हारे स्वामी ने निर्दय बन कर तुम्हें इस दशा में निकाल दिया ? मैं समझता हूँ कि तुम निर्दोष हो, किंतु तुम्हारे पूर्वभव के किसी अशुभ कर्म के उदय से तुम्हें वनवास का दुःख भोगना पड़ रहा है । तुम मुझे अपनी कष्ट कथा सुनाओ, निःशंक होकर कहो। तुम्हारे दुःख से में दुःखी हो रहा हूँ ।" " 1l राजा की बात सुन कर सीता विचार में पड़ गई । " यह कौन । इसे अपनी कष्टकथा कहनी चाहिए या नहीं । कहीं यह भी धोखा तो नहीं वेगा ?" आदि प्रश्न उसके मन में उठने लगे । राजा का सुमति नामक मन्त्री सीता की उलझन समझ गया । वह बोला- Jain Education International २०६ 'बहिन ! ये पुण्डरीक नगर के स्वामी हैं । इनके पिता स्व. महाराज गजवाहनजी और मातेश्वरी बन्धुदेवी थे । ये परम श्रमणोपासक हैं, परनारी-सहोदर हैं । ये इस वन में हाथियों को पकड़ने आये थे । अब कार्य सिद्ध कर के लौट रहे हैं । तुम्हें इन पर विश्वास रख कर अपनी दुःख - गाथा सुना देनी चाहिए ।" मन्त्री की बात सुन कर सीता विश्वस्त हुई और रोते-रोते बीती हुई घटना सुनाई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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