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________________ शत्रुघ्न का पूर्वभव १९७ उत्पन्न कर शत्रुघ्न को विचलित करने का प्रयत्न किया । शत्रुघ्न चिन्तामग्न हो गए, तो कुलदेवों ने आ कर उपद्रव का कारण बताया । “चमरेन्द्र से रक्षा किस प्रकार हो"इसका उपाय करने के लिए शत्रुघ्न, राम-लक्ष्मण के पास अयोध्या पहुंचे। शत्रुघ्न का पूर्वभव जिस समय शत्रुघ्न अयोध्या में आये, उसी समय मुनिराज श्रीदेशभूषणजी और कुलभूषणजी भी वहां आये । राम-लक्ष्मण और शत्रुघ्न, मुनिगज को वन्दन करने गए। सर्वज्ञ भगवान् से रामभद्रजी ने पूछा--" भगवन् ! शत्रुघ्न को इस विशाल भरतक्षेत्र में केवल मथुरा लेने का ही आग्रह क्यों हुआ ? इसकी मथुरा पर इतनी आसक्ति क्यों है ?" सर्वज्ञ भगवान देशभूषणजी ने कहा-- "शत्रुघ्न का जीव, मथुरा में अनेक बार उत्पन्न हुआ था । एकबार वह 'श्रीधर' नाम का ब्राह्मण था । वह रूपवान् था और साधु-संतों का भक्त भी । एकबार वह कहीं जा रहा था कि राजमहिषी ललिता की दृष्टि उस पर पड़ी । वह श्रीधर पर मोहित हो गई। उसने उसे अपने पास बुलाया। श्रीधर महारानी के पास आया ही था कि अकस्मात् राजा भी वहाँ आ पहुँचा। राजा को देख कर महारानी घबड़ाई और चिल्लाई--" इस चोर को पकड़ो । यह चोरी करने आया है ।" राजा ने श्रीधर का पकड़ लिया और राजाज्ञा से वह वधस्थान ले जाया गया। श्रीधर, साधुओं की संगति करता ही था । इस मरणाना उपसर्ग को देख कर उसके मन में संसार के प्रति तीव्र विरक्ति हो गई और उसने प्रतिज्ञा कर ली कि--" यदि जीवन शेष रहे और यह विपत्ति टल जाय, तो मनुष्य-भव का सुफल प्राप्त कर लं । सद्भाग्य से उधर से निग्रंथ मनि श्री कल्याणचन्द्रजी पधार रहे थे। उन्होंने श्रीधर की दशा देखी तो अधिकारी को समझाया और राजा को प्रतिबो श्रीधर को मुक्त कराया । बन्धन-मुक्त होते ही श्रीधर प्रवजित हो गया और तपस्या कर के देवलोक में गया वहाँ से च्यव कर उसी मथुरा में चन्द्रप्रभ राजा की रानी कांचनप्रभा की कुक्षि से 'अचल' नाम का पुत्र हुआ। अचलकुमार अपने पिता का अत्यन्त प्रिय था । उसके भानुप्रभ आदि आठ बड़े सपत्न-बन्ध (सोतेली माता के पुत्र) थे । उन ज्येष्ठ-भ्राताओं ने सोचा--" अचल, पिताश्री का अत्यन्त प्रिय है. इसलिये यही राज्य का उत्तराधिकारी होगा और हम इसके अधीन हो जावेंगे। ऐसा नहीं हो जाय, इसलिए अचल को इस जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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