________________
तीर्थंकर चरित्र
कर रहे हैं । उनका त्रिशूल शस्त्रागार में है । इसलिए इस समय युद्ध करना सरल होगा।।"
शत्रुघ्न ने सेना सहित रात के समय प्रयाण किया और मध नरेश के नगरी में आने का मार्ग रोका । जब मधु नरेश उद्यान से लौट कर अपने भवन में आने लगे, तो उनके साथ युद्ध प्रारम्भ कर दिया। थोड़े ही समय में शत्रुघ्न ने मधु के लवण नाम के पुत्र को मार डाला । पुत्र-मरण से अत्यधिक क्रुद्ध हो कर मधु, शत्रुघ्न से प्रचण्ड युद्ध करने लगा। दोनों योद्धाओं में बहुत समय तक युद्ध होता रहा । अन्त में शत्रुघ्न ने लक्ष्मण के दिये अर्णवावर्त धनुष और अग्निमुख बाण ग्रहण किया और मधु पर प्रहार करने लगे। उन बाणों का प्रहार मधु को असह्य हो गया । वह शक्ति-रहित होने लगा। उसे विचार हुआ कि 'मेरा वह त्रिशूल अभी मेरे पास होता, तो शत्रु को विनष्ट किया जाता । अब रक्षा नहीं हो सकती।' उसने जीवन की आशा छोड़ दी। उसका विचार पलटा--"हा ! मैने मनुष्य-भव पा कर भी व्यर्थ गँवा दिया । न तो मैने संयम साधना की, न दर्प त्याग
और ज्ञान-ध्यानादि से आत्मा को पवित्र किया। मेरा सारा भव ही व्यर्थ गया।''--इस प्रकार चिन्तन करते हुए उसकी आत्मपरिणति संयम के योग्य बन गई । इस प्रकार भावसंयम में प्राण छोड़ कर वह सनत्कुमार देवलोक में महद्धिक देव हुआ। मधु के मृत शरीर पर देवों ने पुष्प-वृष्टि की और जय-जयकार किया।
मध के पास जो देवरूपी त्रिशल था, वह मध के मरते ही उसकी शस्त्रागार से निकल कर चमरेन्द्र के पास पहुँचा और शत्रुघ्न द्वारा मधु के छलपूर्वक मारे जाने की बात सुनाई । चमरेन्द्र, अपने मित्र की मृत्यु पर दुःखी हुआ। वह क्रोधपूर्वक शत्रुघ्न को मारो के लिए चला । चमरेन्द्र को जाते देख कर वेणुदारी नाम के गरुड़पति इन्द्र ने पूछा-- "आप कहां जा रहे हैं ?" चमरेन्द्र कहा--" मैं अपने मित्र-घातक शत्रुघ्न को मारने के लिए मथुरा जा रहा हूँ।" तब वेणुदारी इन्द्री ने कहा;--
"रावण ने धरणेन्द्र से अमोघविजया शक्ति प्राप्त की थी। उस महाशक्ति को भी प्रबल पुण्यशाली लक्ष्मण ने जीत ली और रावण को मार डाला, तो शत्रुघ्न तो उन वासुदेव और बलदेव का भाई है । उसके सामने बिचारा मधु किस गिनती में है ?"
चमरेन्द्र ने कहा--'लक्ष्मण विशल्या कुमारी के प्रभाव से उस शक्ति को जीत सका । यदि विशल्या नहीं होती, नो लक्ष्मण नहीं बच सकते और अब तो विशल्या कुमारिका नहीं रही । इसलिए उसका प्रभाव भी नहीं रहा । अतएव मैं मेरे मित्रघातक को अवश्य ही मारूँगा।' इस प्रकार कह कर चमरेन्द्र शीघ्र ही मथुरा आया। उसने देखा कि शत्रुघ्न के राज्य से समस्त प्रजा प्रसन्न है, संतुष्ट है, स्वस्थ है, तो उसने प्रजा में व्याधि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org