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________________ शत्रुध्न को मथुरा का राज्य मिला १६५ का राज्याभिषेक करने की प्रार्थना की। रामभद्रजी ने विचार करके कहा--" लक्ष्मण का वामदेव पद का अभिषेक करो।" इस अभिषेक के साथ ही रामभद्रजी का बलदेव पद का अभिषेक हुआ। शत्रुध्न को मथुरा का राज्य मिला रामभद्रजी ने विभीषण को क्रमागत राक्षसद्वीप, सुग्रीव को कपिद्वीप, हनुमान को श्रीपुर, विराध को पाताललंका, नील को ऋक्षपुर, प्रतिसूर्य को हनुपुर, रत्नजटी को देवोपनीत नगर और भामण्डल को वैताढ्य गिरि पर का रथनुपुर नगर दिया। दूसरे राजाओं को भी अन्य-अन्य देश देये, फिर शत्रुघ्न से कहा-"वत्स ! तुझे जो देश ठीक लो, वह लेले ।" शत्रुघ्नजी ने कहा--" आर्य ! मुझे मथुरा दीजिये ।" रामभद्रजी ने कहा-- "वत्स ! मथुग की प्राप्ति दुःसाध्य है । वहां मधु राजा का राज्य है । वह अपनी राजधानी सरलता से नहीं देगा । उसे चमरेन्द्र से एक अत्यंत प्रभावशाली त्रिशूल मिला है । वह त्रिशूल, दूर से ही शत्रु-सन्य का हनन कर के लौट कर फेंकने वाले के हाथ में चला जाता है। इसलिए तु कोई दूसरा राज्य माँग ले।" --आर्य ! आपने प्रबल एवं शक्तिशाली राक्षसकुल को विनष्ट कर के विजय प्राप्त कर ली, तो बिचारा मधु किस गिनती में है ? में आपका छोटा भाई हूँ। मेरे साद रह कर आप युद्ध करेंगे, तो मधु, बच नहीं सकेगा। इसलिए मुझे मथुरा दिलवाइए । मै स्वयं मधु के साथ विग्रह करूँगा।" शत्रुघ्न ने पुनः निवेदन किया । शत्रुघ्न का आग्रह जान कर रामभद्रजी ने कहा--" भाई ! यह उचित तो नहीं, है, परन्तु तुम्हारी यही इच्छा है, तो जब मधु प्रमाद में हो, उसके पास त्रिशूल नहीं हो, तभी उससे युद्ध करना"-इतना कह कर राम ने शत्रुघ्न को अक्षय बाण वाले दो तूणीर (तरकश --माथा) दिये और कृतांतवदन नामक सेनापति को साथ भेजा । लक्ष्मणजी ने अपने अग्निमुख बाण और अर्णवावर्त धनुष दिया । शत्रुघ्न ने निरन्तर प्रयाण करते हुए मथुरा नगरी के निकट पहुँच कर, नदी के किनारे पड़ाव किया। उन्होंने अपने गुप्त सेवक (भेदिये) भज कर मधु की गतिविधि का पता लगाया । भेदियों ने आ कर कहा-- "मधु नरेश अपनी रानी के साथ इस समय नगरी से बाहर कुबेरोद्यान में क्रीड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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