SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ तीर्थकर चरित्र सेठ का 'धन' नामक पुत्र हुआ और रमण भी उसी सेठ की लक्ष्मी नाम की पत्नी का भूषण नाम वाला पुत्र हुआ। सेठ ने भूषण का बत्तीस कन्याओं के साथ लग्न किया। भूषण सुखभोग में लीन था। वह अपने भवन की छत पर सोया था। रात के अन्तिम प्रहर में उसने देवों का आवागमन देखा । उसे ज्ञात हुआ कि महामुनि श्रीधर स्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है । देवगण केवल-महोत्सव के लिए जा रहे हैं । भूषण के मन में धर्म-भावना उत्पन्न हुई। वह उठा और केवली भगवान् को वन्दन करने के लिए चल दिया। मार्ग में उसे सर्प ने काटा । शुभ परिणाम में देह को त्याग कर, शुभगति में गया। शुभ गतियों में जन्म-मरण करते वह जम्बूद्वीप के अपर-विदेह क्षेत्र में, रत्नपुर नगर में, अचल नाम के चक्रवर्ती की हरिणी नाम की रानी के प्रियदर्शन नाम का पुत्र हुआ। वह वाल्यकाल से ही धर्मप्रिय था । वह संसार का त्याग कर प्रव्रज्या लेना चाहता था, परन्तु पिता के आग्रह से तीन हजार कुमारियों से लग्न किया। लग्न करने पर भी उसका वैराग्य स्थायी रहा और गृहवास में भी चौसठ हजार वर्ष तक व्रत तथा तप का आराधन कर के ब्रह्म देवलोक में देव हुआ। धन भी संसार में भटकता हुआ पोतनपुर नगर में मृदुमति नाम का ब्राह्मण-पुत्र हुआ । पुत्र की उद्दण्डता देख कर पिता ने घर से निकाल दिया । वह इधर-उधर भटकता रहा और कुसंगति से अनेक प्रकार के व्यसन तथा धूर्तता आदि में प्रवीण हो कर पुन घर आया । द्युत-क्रीड़ा में तो वह इतना कुशल हो गया था कि उसे कोई जीत ही नहीं सकता था। उसने जुआ खेल कर बहुतसा धन जुटा लिया और वसंतसेना नाम की वेश्या के मोह में पड़ कर भोगासक्त रहने लगा। बाद में सद्गुरु के उपदेश से विरक्त हो कर संयमी बन गया और आयु पूर्ण कर वह भी ब्रह्मदेवलोक में देव हुआ । देव-भव से घर कर वह पूर्वभव के मायाचार से भुवनालंकार हाथी हुआ और प्रियदर्शन का जीव, स्वमत्र छोड़ कर भरतजी हुए हैं । भरतजी को देखते ही गजराज को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और उस ज्ञान से ही वह निर्मद हुआ।" __ सर्वज्ञ भगवान् से पूर्वभव सुन कर भरतजी के वैराग्य में वृद्धि हुई ! उन्हें ने एक हजार राजाओं के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की और चारित्र का पालन कर मुक्त हुए । साथ ही दीक्षित राजा भी चारित्र का पालन कर मोक्ष गए । भुवनालंकार हाथी भी व्रत एव तप का आचरण कर पुनः ब्रह्म देवलोक में गया और राजमाता कैकेयी संयम साधना कर बिमुक्त हुई। भरतजी के दीक्षित होते ही अन्य नरेशों और प्रजा के अग्रगण्यों ने गमभद्रजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy