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तीर्थंकर चरित्र
हो गया और स्तंभ उखाड़ कर भागा । वह किसी भी प्रकार वश में नहीं आ रहा था। महावत आदि उसके पीछे भागे आ रहे थे। समाचार सन कर राम-लक्ष्मण भी सामन्तों सहित अपने प्रिय हाथी के पीछे आ रहे थे। किन्तु उसे पकड़ने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो चुके थे। गजराज भागता हुआ उसी स्थान पर आया, जहां जलक्रीड़ा हो रही थी। गजराज की भरतजी पर दृष्टि पड़ते ही शांत हो गया। उसका मद उतर चुका था। भरतजी भी उसे देख कर हर्षित हुए। हाथी वश में हो गया। उसे गजशाला में ले जा कर बांध दिया गया। सभी जन चकित रह गए कि-भरतजी को देखते ही हाथी एक दम शांत कैसे हो गया, क्या कारण है इसका ? कोई समझ नहीं रहा था। भरतजी भी नहीं जानते थे। उसी समय देशभूषणजी और कुलभूषणजी ये दो मुनिराज अयोध्या के उद्यान में पधारे । महामुनि देशभूषणजी सर्वज्ञ-सर्वदर्शी थे । राम-लक्ष्मण और समस्त परिवार तथा नगरजन मुनिराज को वन्दन करने उद्यान में आये । धर्म-देशना सुनी। इसके बाद रामभद्रजी ने पूछा--" भगवन् ! मेरा भुवनालंकार हाथी, भरत को देख कर मद-रहित एवं शांत कैसे हुआ, क्या कारण है इसका ?"
केवली भगवान ने भरतजी और भुवनालंकार का पूर्व सम्बन्ध बतलाते हुए कहा;
"इस अवपिणी के आदि जिनेश्वर भगवान् ऋषभदेवजी के साथ चार हजार राजाओं ने निग्रंथ-प्रव्रज्या ग्रहण की थी। किन्तु जब भगवान् निराहार रह कर मौनपूर्वक तप करने लगे, तो वे सभी क्षुधा-परीषह से पराजित हो कर वनवासी तापस बन गए और फल-फूल खा कर जीवन बिताने लगे। उनमें चन्द्रोदय और सूरोदय नाम के दो राजकुमार थे । चिरकाल भव-भ्रमण करने के बाद चन्द्रोदय तो गजपुर में कुलंकर नामक राजकुमार हुआ और सूरोदय उसी नगर में श्रुतिरति नामक पुरोहित पुत्र हुआ। पूर्वभव के सम्बन्ध के कारण दोनों में मित्रता हो गई। राजकुमार कुलंकर यथासमय राजा हुआ। एक दिन वह तापस के आश्रम में जा रहा था कि मार्ग में अभिनन्दन मुनि मिले। वे अवधिज्ञानी थे। उन्होंने राजा से कहा--" राजन् ! तुम जिसके पास जा रहे हो? वह तापस पंचाग्नि तप करता है । उसकी धुनी में दहन करने के लिए जो काष्ठ लाया गया है, उसमें एक सर्प है । वह सर्प पूर्व-भव में तुम्हारा क्षेमंकर नामक पितामह था। यदि तापस ने काष्ठ को बिना देखे ही अग्नि में डाल दिया, तो वह सर्प जल मरेगा । कितना अज्ञान है जीवों में ?"
मुनिराज के वचन सुन कर राजा व्याकुल हो गया और तत्काल आश्रम में पहुँच कर उस लकड़े को फड़वाया। लकड़ा फटते ही सर्प उछल कर बाहर निकल आया। यह
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