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भ्रातृ-मिलन और अयोध्या प्रवेश
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सेवा से हम अपनी माताओं को भी भूल गए और इतने वर्ष तक यहीं जमे रहे । अब हम शीघ्र ही अयोध्या जाना चाहते हैं । मातेश्वरी की वेदना हमसे सहन नहीं होती। अब हमारे प्रस्थान की व्यवस्था करो ।" विभीषण ने कहा - " स्वामिन् ! आप पधारना चाहते हैं, तो मैं नहीं रोक सकता, किन्तु निवेदन है कि सोलह दिन और ठहर जाइए, तबतक मैं अपने कलाकारों को अयोध्या भेज कर नगर की सजाई करवा दूं- जिससे आपका नगर-प्रवेश उत्सवपूर्वक किया जा सके। वैसे ही अचानक पहुँच जाना मुझे अच्छा नहीं लगता ।" रामभद्रजी ने विभीषण की विनती स्वीकार कर ली। विभीषण ने अपने विद्याधर कलाकारों को अयोध्या भेजा, जिन्होंने अयोध्या को सजा कर स्वर्गपुरी के समान अत्यन्त मनोहर बना दी । नारदजी भी तत्काल अयोध्या पहुँचे और राम-लक्ष्मण के आगमन के समाचार सुना कर सब को संतुष्ट किया । भरतजी, शत्रुघ्नजी, माताएँ और समस्त नागरिक, राम-लक्ष्मण के आगमन के समाचार जान कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करने लगे ।
भ्रातृ-मिलन और अयोध्या प्रवेश
सोलह दिन के बाद राम-लक्ष्मण, अपने अन्तःपुर सहित और विभीषण, सुग्रीव, भामण्डल आदि राजाओं के साथ पुष्पक विमान से प्रस्थान कर अयोध्या की ओर चले । भरत शत्रुघ्न हाथी पर बैठ कर अपने पूज्य ज्येष्ठ-बन्धु का सत्कार करने के लिए सामने आये । उन्हें दूर से आते देख कर, रामभद्रजी की आज्ञा से विमान पृथ्वी पर उतारा गया । विमान को उतरता देख कर भरतजी और शत्रुघ्नजी भी हाथी पर से नीचे उतरे । उधर राम-लक्ष्मण भी विमान से उतर कर भाई से मिलने आगे बढ़े। निकट आते ही भरतशत्रुघ्न उनके चरणों में गिर पड़े। उनका हृदय भर आया और आँखों से आँसू बहने लगे । रामभद्रजी ने उन्हें उठा कर आलिंगन में बाँध लिया और मस्तक चूमने लगे । इसी प्रकार लक्ष्मणजी ने भी भाइयों को गले लगा कर आलिंगन किया। इसके बाद सभी विमान में बैठ कर अयोध्या पहुँचे । नगर के बाहर ही नागरिक जन प्रतीक्षा में खड़े थे । बदिन्त्र बज रहे थे और उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा की जा रही थी। उधर रामभद्रजी आदि मानव महासागर जयनाद करता हुआ उमड़ आया । इधर रामभद्रजी आदि भी शीघ्रतापूर्वक विमान से उतर कर हाथ फैलाते हुए आगे बढ़े। बड़ी कठिनाई से सवारी जुड़ पाई और शनैः-शनैः आगे बढ़ने लगी। नागरिकज्न पद-पद पर जय-जयकार कर रहे थे। महिलाएँ
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