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________________ १८८ तीर्थकर चरित्र इस प्रकार घोषणा करके विभीषण का हाथ पकड़ कर सिंहासन पर बिठाया और राज्याभिषेक उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तत्काल शुभ-मुहूर्त में विभीषण का राज्याभिषेक किया गया और राजतिलक तथा दान-सम्मान के बाद उत्सव पूर्ण किया। इसके पश्चात् रामभद्रजी की आज्ञा से विद्याधरों ने जा कर सिंहोदर राजा आदि की कुमारियों को वहाँ लाये । इनके साथ लग्न करने का पहले ही निश्चित् हो चुका था। उन कुमारियों से विद्याधर महिलाओं ने, मंगलाचार एवं मंगल-गानपूर्वक, पूर्व निश्चयानुसार राम और लक्ष्मण ने लग्न किया। इसके बाद राम-लक्ष्मणादि छह वर्ष पर्यन्त लंका में सुखपूर्वक रहे। माता की चिंता और नारदजी का संदेश लाना राम-लक्ष्मण आदि लंका में सुखपूर्वक समय बिता रहे थे। उधर अयोध्या में राजमाता कोशल्या और सुमित्रादि पुत्र-वियोग से दुःखपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही थी। उन्हें लंका में लक्ष्मण के घायल होने और विशल्या के जाने के बाद कोई समाचार नहीं मिले थे। वे यह सोच कर कि लक्ष्मण बचा या नहीं और युद्ध का क्या परिणाम हुआ। अभी राम, लक्ष्मण और सीता किस अवस्था में हैं,' आदि--चिन्ता में ही घुल रही थी। ऐसे समय अचानक नारदजी वहां आये। उन्होंने राजमाताओं की शोकमग्न दशा देख कर कारण पूछा । राजमाता कौशल्या ने कहा "राम-लक्ष्मण और सीता वन में गये। सीता का रावण ने हरण किया। लक्ष्मण को शक्ति का भयंकर आघात लगा। उसके निवारण के लिए विशल्या को ले गए। उसके बाद क्या हुआ, कुछ भी समाचार नहीं मिले । उनसे बिछुड़े वर्षों हो गए। हम उन्हें देख सकेंगे या नहीं, यही हमारी चिन्ता का कारण है।" नारदजी ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा-"भद्रे ! तुम चिन्ता मत करो । वे स्वस्थ हैं । उन्हें कोई नहीं मार सकता। तुम विश्वास रखो । मैं अब वहीं जाऊँगा और उन्हें यहाँ लाऊँगा।" नारदजी राजमाताओं को आश्वासन दे कर, आकाश-मार्ग से उड़ कर सीधे लंका पहुँचे । रामभद्रजी ने नारदजी का सत्कार किया और आगमन का कारण पूछा । नारद से अपनी माताओं की मनोवेदना जान कर रामजी ने तत्काल विभीषण से कहा--"तुम्हारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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