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________________ विभीषण का राज्याभिषेक १८७ महोत्सम पूर्वक लंका में प्रवेश किया। श्रीराम के सेवक के रूप में विभीषण आगे चल रहे थे। विद्याधर-महिलाएँ मंगल गीत गा रही थी । चलते-चलते पुष्पगिरि के उद्यान में पहुँचने पर मीताजी दिखाई दिये । ज्योंही रामभद्रजी की दृष्टि सीताजी पर पड़ी, उनके हर्ष का चार नहीं रहा । वे नव-जीवन पाये हों--ऐसा अनुभव करने लगे। उन्होंने उसी समय मोनाजी को अपने पास बिठाया । उपस्थित सभी गन्धर्वो ने आकाश में और जन-समह ने 'महासती मीताजी की जय'--जयघोष किया, हर्षनाद किया और अभिनन्दन करने लगे। लक्ष्मणजी ने सीताजी के चरणों में नमस्कार किया। सीताजी ने उन्हें आशिष दिया“चिरकाल जीवित रहो, आनन्द करो और विजयी बनो." और उनके मस्तक का आघ्राण किया। भामण्डल ने अपनी बहिन सीताजी को प्रणाम किया । सीता ने उन्हें गभाशिष दे कर प्रसन्न किया। इसके बाद सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, अंगद और अन्य वीरों ने अपना परिचय देते हुए सीताजी को प्रणाम किया। श्रीराम-लक्ष्मण के मिलन ने नीताजी में उत्पन्न हर्ष एवं उल्लास से वे ऐसी दिखाई देने लगी जैसे चन्द्रमा के पुर्ण उदय होने पर कमलिनी विकसित हुई हो। विभीषण का राज्याभिषेक इसके बाद श्रीरामभद्रजी, सीताजी के साथ रावण के भुवनालंकार गजराज पर आरूढ़ हो कर सुग्रीवादि नरेशवृन्द के साथ उत्सवपूर्वक रावण के भव्य प्रसाद में आये । म्नान एवं भोजनपानादि से निवृत्त हो कर राज्य-सभा जुड़ी, जिसमें राम-लक्ष्मण सुग्रीवादि के अतिरिक्त विभीषण तथा लंका-राज्य के अधिकारी और सम्बन्धित राजा आदि भी सम्मिलित हुए । विभीषण ने खड़े हो कर श्रीरामभद्रजी से निवेदन किया;-- __ "स्वामिन् ! लंका का विशाल साम्राज्य, यह अखूट भण्डार और समस्त ऋद्धि को स्वीकार कीजिये और आज्ञा दीजिये कि हम आपका विधिवत् राज्याभिषेक करें।" रामभद्रजी ने विभीषण को सम्बोधित करते हुए कहा; " महाभाव ! यह राज्य आपका है । मैंने पहले ही आपसे कहा था और अब भी यही कहना है कि इस राज्य पर आपका अभिषेक होगा। आप न्याय-नीति से राज्य करेंगे । आपके शासन में राज्य और प्रजा सुखी एवं समृद्ध रहेगी । जिन-जिन के अधिकार में जो जो राज्य हैं, वे यथावत् रहेंगे और सभी नीति एवं धर्म को आदर्श रख कर राज्य का संचालन करेंगे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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