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________________ १८४ तीर्थंकर चरित्र " वास्तव में मेरे दुर्भाग्य का उदय है । मेरे पतन का समय आ लगा है। मुनिवर की भविष्यवाणी सत्य हो रही है । भाई विभीषण और मन्त्रियों के परामर्श की अवगणना का परिणाम निश्चित ही बुरा होगा ।" विभीषण का अंतिम निवेदन रावण को चिन्तित देख कर विभीषण ने कहा- " भातृवर ! अब भी समझो और सीता को ला कर रामभद्रजी को अर्पण करदो, तो यहीं बात समाप्त हो जायगी और युद्ध का अन्त आ जायगा ।" विभीषण की बात सुन कर रावण का क्रोध फिर उभर आया । भवितव्यता ने - "चुप रड् वंश-द्रोही ! शक्तिशाली है कि उस चक्र के नहीं हूँ ।" उसे उकसाया । दुर्मति आ कर रावण के शब्दों में प्रकट हुई; चक्र गया, तो क्या हुआ ? मेरा यह मुक्का ही अभी इतना और शत्रु के टुकड़े-टुकड़े कर सकता है । में भयभीत रावण का मरण रावण की गर्वोक्ति सुन कर लक्ष्मण ने चक्र घुमाया और रावण पर फेंका। चक्र के प्रहार से रावण की छाती फट गई और वह भूमि पर गिर पड़ा । वक्ष से रक्त की धारा बहने लगी । रावण अन्तिम साँस लेने लगा । वह ज्येष्ठ - कृष्णा ११ के दिन का अन्तिम प्रहर था। रावण मर कर चौथे नरक में गया। रावण के गिरते ही देवों ने लक्ष्मणजी पर पुष्पवर्षा की और जयजयकार बोली । राम-शिविर में विजय घोष हुआ और वानरदल नाच - कूद कर विजयोत्सव मनाने लगा । रावण की मृत्यु के आघात से पीड़ित होकर विभीषण भी शोक-मग्न हो गया । परन्तु तत्काल सावधान हुआ और राक्षसी - सेना को सम्बोधित कर कहा "वीर राक्षसगण ! शान्त हो कर स्थिति को समझो। ये दोनों भ्राता सामान्य मनुष्य नहीं, महापुरुष हैं । श्री रामभद्रजी इस कालचक्र के पद्म नाम के आठवें बलदेव हैं और श्री लक्ष्मणजी आठवें नारायण ( वासुदेव ) हैं । इनका आश्रय स्वीकार करो ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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