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तीर्थंकर चरित्र
प्रसन्न हुए और भाई को छाती से लगा कर भुजाओं से बाँध लिया । सारे शिविर में मंगलवाद्य बजने लगे । उत्सव मनाया जाने लगा और वहीं विशल्या तथा अन्य कुमारियों के साथ लक्ष्मण के लग्न हुए । विशल्या के स्नान-जल से अन्य घायल सैनिकों को भी लाभ हुआ ।
रावण की चिन्ता
लक्ष्मण के जीवित होने के समाचारों ने रावण को चिन्ता - सागर में डाल दिया । उसने परामर्श करने के लिए अपने मन्त्रि मण्डल को बुलाया । परिषद् के सामने युद्धजन्य परिस्थिति का वर्णन करते हुए रावण ने कहा ;
" मेरा विश्वास था कि शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण मर जायगा और लक्ष्मण के मरने पर राम भी मरेगा ही । क्योंकि दोनों भाइयों में स्नेह अत्यधिक है। इन दोनों के मरने पर युद्ध का अन्त आ जायगा । इससे कुंभकर्ण आदि भी छूट जायेंगे, किंतु बात उलटी बनी | लक्ष्मण जीवित है और स्वस्थ है । मेरी योजना सर्वथा निष्फल हुई। अब क्या करना और कुंभकर्ण आदि को कैसे छुड़ाना। इसी विचार के लिए आप सब को बुलाया है । आपकी दृष्टि में उचित मार्ग कौनसा है :
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-- " स्वामिन् ! हमारी दृष्टि में सीता की मुक्ति ही सब से सरल और उत्तम उपाय है। सीता को मुक्त करते ही युद्ध समाप्त हो जायगा और सभी बन्दी छूट जायेंगे। हमारी दृष्टि में इसके सिवाय अन्य मार्ग नहीं आता । यदि यह मार्ग नहीं अपनाया गया, तो सर्वनाश भी हो सकता है । दैव अपने अनुकूल नहीं लगता । इसलिए राम को प्रसन्न करना ही एक मात्र उपाय है " -- मन्त्रियों ने एकमत हो कर कहा ।
रावण के सन्धि-सन्देश को राम ने
ठुकराया
मन्त्रिमण्डल का परामर्श रावण को नहीं भाया । उसका दुर्भाग्य, अभिमान के रूप में खड़ा हो कर, उसको सन्मार्ग पर नहीं आने देता था । उसने मन्त्रियों के सत्परामर्श की अवगणना की और दूत को बुलाकर राम-लक्ष्मण को समझाने के लिए भेजा । दूत, राम-लक्ष्मण के सैनिक शिविर में आया। उस समय भ्रातृद्वय सुग्रीवादि वीरों के साथ
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