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विशल्या के स्नानोदक का प्रभाव
रोग सर्वत्र व्याप्त हो रहा था, तो मैने विशल्या के स्नान-जल का रोगियों पर सिंचन किया। जल का सिंचन होते ही व्याधि नष्ट हो गई और सभी जन स्वस्थ हो गए । कालान्तर में सत्यभूति नाम के चारण-मुनि पधारे। मैंने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा-~~~“ पूर्वभव के तप के फलस्वरूप विशल्या में यह विशेषता प्रकट हुई हैं । इस जल से व्रण का संरोहण, शल्योद्धार और व्याधियां नष्ट होती है ।” उन्होंने यह भी कहा था कि--" इस बालिका के पति लक्ष्मणजी होंगे ।"
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" उपरोक्त घटना सुना कर द्रोणमेघ मामा ने मुझे विशल्या के स्नान का जल दिया । उसके सिंचन से नागरिकजन स्वस्थ हो गए और उसी जल से मैने तुम्हें स्वस्थ किया है ।" 'स्वामिन् ! यह मेरे और आपके भाई के अनुभव की बात है । आप उस जल को प्राप्त कर सिंचन करेंगे, तो अवश्य लाभ होगा ।"
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उपरोक्त बात सुनकर रामभद्रजी ने विशल्या के स्नान का जल लाने के लिए भामण्डल, हनुमान और अंगद को आज्ञा दी । वे तत्काल विमान ले कर उड़े और अयोध्या पहुँचे । भरत नरेश निद्रा मग्न थे । उन्होंने आकाश में रह कर गान करना प्रारम्भ किया। गान सुनते ही भरतजी जाग्रत हुए । भरतजी ने जब सभी बात जानी, तो वे उसी समय उनके साथ हो गए और कौतुकमंगल नगर पहुँचे । भरत नरेश ने अपने मामा से विशल्या की याचना की । द्रोणमेघ ने अन्य एक हजार कन्याओं के साथ विशल्या को प्रदान की । वे उसी समय उन्हें ले कर चले और भरतजी को अयोध्या में छोड़ कर रामभद्रजी के पास पहुँचे । विमान में प्रकाश हो रहा था । विमान प्रकाश सूर्योदय का आभास करा रहा था । दूर से प्रकाश देख कर रामभद्रजी घबड़ाने लगे कि -- ' सूर्योदय' हो गया, किन्तु स्नानजल अभी तक नहीं आया । उन्हें लक्ष्मणजी के जीवन की आशा टूटने लगी । इतने में विमान जा पहुँचा । विशल्या ने लक्ष्मण का स्पर्श किया । उसका स्पर्श होते ही शक्ति शरीर से निकल कर जाने लगी । हनुमान ने जाती हुई शक्ति को पकड़ लिया । शक्ति बोली ; -- 'मैं तो देवरूपी हूँ और प्रज्ञप्ति-विद्या की बहिन हूँ । मेरा कोई दोष नहीं । धरणेन्द्र ने मुझे रावण को दी थी । में विशल्या के तप-तेज को सहन नहीं कर सकती, इसलिए जा रही हूँ । मुझे छोड़ दीजिए ।"
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हनुमान ने उसे छोड़ दिया और वह अन्तर्धान हो गई । राजकुमारी विशल्या ने फिर लक्ष्मण का स्पर्श किया और गोशीर्ष चन्दन का लेप किया, जिससे लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए और नींद में से जागे हो वैसे उठ बैठे । लक्ष्मणजी को स्वस्थ देख कर राम अत्यन्त
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