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________________ विशल्या के स्नानोदक का प्रभाव रोग सर्वत्र व्याप्त हो रहा था, तो मैने विशल्या के स्नान-जल का रोगियों पर सिंचन किया। जल का सिंचन होते ही व्याधि नष्ट हो गई और सभी जन स्वस्थ हो गए । कालान्तर में सत्यभूति नाम के चारण-मुनि पधारे। मैंने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा-~~~“ पूर्वभव के तप के फलस्वरूप विशल्या में यह विशेषता प्रकट हुई हैं । इस जल से व्रण का संरोहण, शल्योद्धार और व्याधियां नष्ट होती है ।” उन्होंने यह भी कहा था कि--" इस बालिका के पति लक्ष्मणजी होंगे ।" १७९ " उपरोक्त घटना सुना कर द्रोणमेघ मामा ने मुझे विशल्या के स्नान का जल दिया । उसके सिंचन से नागरिकजन स्वस्थ हो गए और उसी जल से मैने तुम्हें स्वस्थ किया है ।" 'स्वामिन् ! यह मेरे और आपके भाई के अनुभव की बात है । आप उस जल को प्राप्त कर सिंचन करेंगे, तो अवश्य लाभ होगा ।" "L Jain Education International उपरोक्त बात सुनकर रामभद्रजी ने विशल्या के स्नान का जल लाने के लिए भामण्डल, हनुमान और अंगद को आज्ञा दी । वे तत्काल विमान ले कर उड़े और अयोध्या पहुँचे । भरत नरेश निद्रा मग्न थे । उन्होंने आकाश में रह कर गान करना प्रारम्भ किया। गान सुनते ही भरतजी जाग्रत हुए । भरतजी ने जब सभी बात जानी, तो वे उसी समय उनके साथ हो गए और कौतुकमंगल नगर पहुँचे । भरत नरेश ने अपने मामा से विशल्या की याचना की । द्रोणमेघ ने अन्य एक हजार कन्याओं के साथ विशल्या को प्रदान की । वे उसी समय उन्हें ले कर चले और भरतजी को अयोध्या में छोड़ कर रामभद्रजी के पास पहुँचे । विमान में प्रकाश हो रहा था । विमान प्रकाश सूर्योदय का आभास करा रहा था । दूर से प्रकाश देख कर रामभद्रजी घबड़ाने लगे कि -- ' सूर्योदय' हो गया, किन्तु स्नानजल अभी तक नहीं आया । उन्हें लक्ष्मणजी के जीवन की आशा टूटने लगी । इतने में विमान जा पहुँचा । विशल्या ने लक्ष्मण का स्पर्श किया । उसका स्पर्श होते ही शक्ति शरीर से निकल कर जाने लगी । हनुमान ने जाती हुई शक्ति को पकड़ लिया । शक्ति बोली ; -- 'मैं तो देवरूपी हूँ और प्रज्ञप्ति-विद्या की बहिन हूँ । मेरा कोई दोष नहीं । धरणेन्द्र ने मुझे रावण को दी थी । में विशल्या के तप-तेज को सहन नहीं कर सकती, इसलिए जा रही हूँ । मुझे छोड़ दीजिए ।" " हनुमान ने उसे छोड़ दिया और वह अन्तर्धान हो गई । राजकुमारी विशल्या ने फिर लक्ष्मण का स्पर्श किया और गोशीर्ष चन्दन का लेप किया, जिससे लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए और नींद में से जागे हो वैसे उठ बैठे । लक्ष्मणजी को स्वस्थ देख कर राम अत्यन्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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