________________
तीर्थकर चरित्र
इस प्रकार आक्रोशपूर्वक बोलते हुए रावण ने शक्ति को बलपूर्वक घुमा कर लक्ष्मण पर फेंकी। इधर सुग्रीव, हनुमान, नल, भ्रामण्डल और विराध आदि वीरों ने उस शक्ति को मध्य में ही नष्ट करने के लिए अपने-अपने अस्त्रों से प्रहार किया, किन्तु उस शक्ति पर इसका कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ और वह सीधी जा कर लक्ष्मण के वक्षस्थल पर लगी। शक्ति के वज्राघात से लक्ष्मणजी मच्छित हो कर गिर पडे। उनके गिरते ही गम-सेना में हाहाकार मच गया । भाई के मूच्छित होते ही रामभद्रजी का कोपानल भड़का । वे स्वयं रावण पर झपटे और तीव्र प्रहार से रावण का रथ, सारथि और घोड़े का चकनाचूर कर दिया। रावण तत्काल दूसरे रथ पर सवार हो कर आया, किन्तु उसकी भी यही दशा हुई। इस प्रकार रावण के पाँच रथ, सारथि और घोड़े नष्ट हो गए। रावण ने सोचा--
__"अभी युद्ध स्थल से हट जाना चाहिए । लक्ष्मण की मृत्यु, राम को भी मार देगी । राम, लक्ष्मण का विरह सहन नहीं कर सकेगा। अभी राम, क्रोध से प्रचण्ड बन रहा है । शोक का प्रभाव होते ही क्रोध उतर जायगा।"
रामभद्रजी हताश रावण युद्ध-भूमि से निकल कर लंका में चला गया। रावण के चले जाने पर रामभद्रजी, लक्ष्मणजी के पास पहुँचे। लक्ष्मणजी को अचेत देख कर वे स्वयं धसक कर गिर पड़े और अचेत हो गए । सुग्रीव आदि ने शीतल जल आदि से रामभद्रजी को साव. धान किया। सावधान होते ही रामभद्रजी लक्ष्मणजी को मूच्छित देख कर विलाप करने लगे । बहुत देर तक विलाप करने के बाद उनका ध्यान, लक्ष्मण पर शक्ति-प्रहार करने वाले रावण की ओर गया और वे धनुष-बाण उठा कर रावण को समाप्त करने के लिए जाने लगे, तब सुग्रीव ने विनयपूर्वक कहा
__ "स्वामिन् ! रुकिये, रावण निशाचर है। वह लंका में चला गया है । रात्रि के समय उसे पाना कठिन है। सर्वप्रथम हमें लक्ष्मणजी को सावधान करना है । रावण कहीं जाने वाला नहीं है । आज नहीं, तो कल । अब उसका समय बहुत निकट आ गया है।"
“बन्धुओं! मैंने आप सब को कष्ट दिया। आप सभी ने हमारा साथ दिया । किन्तु देव हमारे विपरीत है। पत्नी का हरण हुआ, भाई का वध हुआ, अब किस भरोसे आप सब को युद्ध में घसीटूं । अब मैं भी शीघ्र ही भाई के रास्ते जाने वाला हूँ। आप सब अपने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org