________________
लक्ष्मणजी मूच्छित
इन्द्रजीत ने लक्ष्मण को मारने के लिए तामस अस्त्र का प्रहार किया, किन्तु लक्ष्मण भी सावधान थे । शत्रु को तामस अस्त्र साधते देख कर लक्ष्मणजी ने पवनास्त्र सम्हाला और उसी सीध में छोड़ा, जिसके प्रभाव से तामसास्त्र मध्य में ही गल कर नष्ट हो गया । साथ ही लक्ष्मणजी ने क्रोधपूर्वक इन्द्रजीत पर नाग पाश फेंका। इससे इन्द्रजीत बँध कर धड़ाम से पृथ्वी पर गिर पड़ा। इन्द्रजीत के गिरते ही, लक्ष्मण के आदेश से विराध ने इन्द्रजीत को उठा कर अपने रथ में डाला और अपने शिविर में ले गया। उधर राम ने कुंभकर्ण को नाग पाश में बांध लिया और उसे भामण्डल अपने रथ में डाल कर शिविर में ले गया । रावण के मेघवाहन आदि योद्धाओं को भी राम-पक्ष के योद्धागण बन्दी बना कर अपने सैनिक शिविर में ले गए ।
लक्ष्मणजी मूर्च्छित
अपने पुत्र और बान्धव आदि को शत्रु द्वारा बन्दी बनाने की घटना, रावण का शोक के साथ क्रोध बढ़ाने वाली हुई । वह स्वयं विकराल बन गया । उसने त्रिशूल उठाया और बलपूर्वक विभीषण पर फेंका। रावण को त्रिशूल चलाते देख कर, लक्ष्मण ने अपने अचूक बाण से आकाश मार्ग में ही त्रिशूल के टुकड़े-टुकड़े कर डाले । अपने त्रिशूल को व्यर्थ एवं नष्ट देख कर रावण क्रोधावेश में उद्विग्न हो गया। उसने धरणेन्द्र द्वारा प्रदत्त 'अमोघविजया' नामक शक्ति सम्हाली और उसे चक्र के समान घुमाने लगा । शक्ति से ज्वालाएँ निकलने लगी । तड़-तड़ करती हुई विद्युत्-तरंगे छूटने लगी। उसके प्रभाव से सैनिक अभिभूत हो कर इधर-उधर होगए। उनके नेत्र बन्द होगए । उनकी अस्वस्थता बढ़ गई । यह स्थिति देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा-
""
"भाई ! रावण जिस शक्ति का प्रहार करने को उद्यत है, उससे यदि अपना अभ्यागत विभीषण मारा गया, तो यह हमारे लिए कलंक की बात होगी । अपन आश्रित को मरवाने वाले कहलाएँगे । इसको बचाना चाहिए ।'
33
१७५
राम का अभिप्राय समझ कर लक्ष्मण शीघ्र ही गरुड़वाहन पर सवार हो कर विभीषण के आगे, रावण के संमुख खड़े होगए । लक्ष्मण को आगे आया देख कर रावण बोला; " अरे लक्ष्मण ! तू क्यों सामने आया ? मैंने यह शक्ति तेरे लिए नहीं, उस भातृद्रोही वंशोच्छेदक विभीषण के लिए उठाई है। वैसे तू भी मेरा शत्रु है । यदि तु मरेगा, तो भी मुझे लाभ ही होगा । अच्छा, ले जौर पहुँच जा मृत्यु के मुंह में ।"
I
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org