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कुंभकर्ण इन्द्रजीत आदि बन्दी हुए
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प्रकार सोच कर और उन बंदियों को वहीं डाल कर, वे अपने शिविर की ओर चल दिये। विभीषण, सुग्रीव और भामण्डल के निकट पहुँच कर रुक गए। राम-लक्ष्मण भी वहाँ पहुंचे । वे चिन्तापूर्वक दोनों मूच्छित वीरों को देखने लगे और उन्हें नागपाश से मुक्त करने का उपाय सोचने लगे।
___ रामभद्रजी को उपाय सूझा । उन्होंने अपने पूर्वपरिचित महालोचन नाम के सुवर्णकुमार जाति के देव का स्मरण किया। इस देव ने पहले रामभद्रजी को वरदान दिया था। स्मरण करते ही देव का आसन कम्पित हुआ। उसने ज्ञान द्वारा वृत्तांत जान कर तत्काल युद्धस्थल पर आया। देव ने रामभद्रनी का सिंहनिनादा नामक विद्या, मूसल, हल और रथ दिया तथा लक्ष्मणजी को गारुड़ी विद्या, विद्युद्वदना गदा तथा रथ दिया । इसक सिवाय दोनों बन्धुओं को वारुण, आग्नेय और वायव्यादि दिव्यास्त्र तथा दो छत्र भी दिये । इसके बाद लक्ष्मणजी, सुग्रीव और भामण्डल के समीप आये । लक्ष्मणजी के आते ही उनके वाहनरूप गरुड़ को देख कर, सुग्रीव और भामण्डल को बाँधे हुए नागपाश के भयंकर सप, उन्हें छोड़ कर भाग गए और दोनों वीर मुक्त हो गए। रामदल ने प्रसन्नता पूर्वक जयजयकार किया। संध्या हो जाने से युद्ध स्थगित हो गया ।
कुंभकर्ण इन्द्रजीत आदि बन्दी हुए तीसरे दिन दोनों पक्ष की सेनाएँ अपने सम्पूर्ण बल से युद्ध के लिए आ-डटी। भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। दोनों ओर की सेनाएँ एक-दूसरे को सर्वथा मिटाने देने के लिए, पूरे जोर से जूझने लगी। जैसे प्रलयकाल उपस्थित हुआ हो । मनुष्य, मनुष्य का ही विनाशक बन गया । मध्यान्ह काल होते राक्षसी-सेना ने वानर-सेना को विचलित कर दिया। अपनी सेना को भग्नप्राय देख कर, सुग्रीव आदि वीर-योद्धाओं ने राक्षसी-सेना पर भीषण प्रहार किया और उसमें घुस कर संहारक पराक्रम किया। जिससे राक्षसी-सेना टूट गई । राक्षसों का पराभव देख कर, रावण ने क्रोधपूर्वक अपना रथ आगे बढ़ाया। रावण के आगे बढ़ते ही वानर-सेना अपने-आप पीछे हट कर उसका मार्ग खुला करने लगी। इस प्रकार रावण के प्रभाव से पराभत सेना का मानस देख कर, रामभद्रजी स्वयं रावण से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ने लगे। किन्तु विभीषण ने उन्हें रोका और स्वयं रावण का निरोध करने के लिए उसके सामने आया। विभीषण को अपने सामने देख कर रावण बोला;--
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