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तीर्थंकर का जन्म और मोक्ष
भिषेक किया ।
यह हरि राजा, भगवान् शीतलनाथ स्वामी के तीर्थ में हुआ। इसने अनेक राजकन्याओं के साथ लग्न किया। इससे उत्पन्न सन्तान 'हरिवंश' के नाम से विख्यात हुई। इस अवसर्पिणी काल की यह आश्चर्यकारी घटना है।
कालान्तर में उस राजा के हरिणी रानी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसका नाम 'पृथ्वीपति' था। अनेक प्रकार के पाप-कर्मों का उपार्जन कर के हरि और हरिणी नरक में गये । हरि का पुत्र पृथ्वीपति राज्य का स्वामी हआ। चिरकाल तक राज्य का संचालन कर के बाद में वह विरक्त हो गया और तप-संयम की आराधना कर के स्वर्ग में गया । पृथ्वीपति का उत्तराधिकारी महागिरि हुआ । वह भी राज्य का पालन कर प्रवजित हो गया और तप-संयम की आराधना कर के मोक्ष प्राप्त हुआ। इस वंश में कई राजा, त्यागमार्ग का अनुसरण कर के मोक्ष में गए और कई स्वर्ग में गए ।
तीथंकर का जन्म और मोक्ष
मगधदेश में राजगृही नाम का नगर था। हरिवंश में उत्पन्न सुमित्र नाम का राजा वहाँ राज करता था । वह नीतिवान्, न्याय-परायण, प्रबल पराक्रमी और जिनधर्म का अनुयायी था। महारानी पद्मावती उसकी अर्धांगना थी। वह भी उत्तम कुलोत्पन्न, सुशीलवती, उत्तम महिलाओं के गुणों से युक्त और रूप-लावण्य से अनुपम थी। राजा-रानी का भोग जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था।
सुरश्रेष्ठ मुनिराज का जीव, प्राणत कल्प का अपना आयुष्य पूर्ण कर के श्रावणशुक्ला पूर्णिमा की रात्रि को श्रवण नक्षत्र के योग में महारानी पद्मावती के गर्भ में उत्पन्न हुआ। महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर ज्येष्ठ-कृष्णा अष्टमी की रात को श्रवण-नक्षत्र वर्तते पुत्ररत्न का जन्म हुआ , दिशाकुमारियों ने सूति-कर्म किया। इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया और पुत्र के गर्भ में आने पर माता, मुनि के समान सुव्रतों का पालन करने में अधिक तत्पर बनी। इससे महाराजा सुमित्रदेव ने पुत्र का नाम 'मुनिसुव्रत'
* त्रि. श. श. पु. च. में लिखा है कि-'देवता ने अपनी शक्ति से उस दम्पत्ति का आयुष्य कम कर दिया ।' किन्तु यह बात संगत नहीं लगती। कदाचित आय के उत्तरकाल में उनका साहरण हुआ होगा।
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