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तीर्थंकर चरित्र
महापुरुषों को कि जो पापकर्मों का त्याग कर के धर्म का आचरण करते हैं । ब्रह्मचर्य का पालन करके कामरूपी कीचड़ से पृथक् रहते हैं...........इस प्रकार पश्चाताप कर रहे थे कि आकाश से बिजली गिरी और राजा तथा वनमाला दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए। पश्चाताप करते हुए शुभ भावों में मर कर वे दोनों हरिवर्ष क्षेत्र में युगल मनुष्य के रूप में जन्मे । माता-पिता ने पुत्र का नाम 'हरि' और पुत्री का नाम 'हरिणी' रखा । पूर्व स्नेह के कारण दोनों सुखोपभोग करने लगे।
राजा और वनमाला की मृत्यु का हाल जान कर वीरकुविद स्वस्थ हुआ और अज्ञान तप करने लगा । बाल-तप के प्रभाव से वह प्रथम स्वर्ग में किल्विषी देव हुआ। अपने विभंगज्ञान से उसने हरि और हरिणी को देखा । उन्हें सुखोपभोग करते देख कर उसका क्रोध भड़क उठा । वह तत्काल हरिवर्ष क्षेत्र में आया और उन युगल दम्पति को नष्ट करने का विचार करने लगा। किन्तु उसे विचार हुआ कि--' इनकी आयु परिपूर्ण है । यदि यहां मरे, तो स्वर्ग में उत्पन्न हो कर सुखभोग ही करेंगे।' इससे मेरा उद्देश्य सिद्ध नहीं होगा । मैं इन्हें दुःखी देखना चाहता हूँ। इसलिये ऐसा उपाय करूँ कि ये यहाँ से मर कर नरक में उत्पन्न हो कर दुःखी बने । इस प्रकार विचार करके उस देव ने उस युगल का अपहरण किया, साथ में कल्पवृक्ष भी ले लिये और उन्हें इस भरत क्षेत्र की चम्पापुरी में लाया। उस समय वहां का इक्ष्वाकु वंश का चन्द्र कीर्ति राजा, निःसंतान मर गया था। राज्य के मन्त्रीगण, राज्य के उत्तराधिकारी के प्रश्न पर विचार कर रहे थे । उस समय वह देव उनके सामने आकाश में प्रकट हो कर बोला ;--
"प्रधानों और सामन्तों ! तुम राज्याधिकारी के लिए चिन्ता कर रहे हो । मैं तुम्हारी चिन्ता दूर करने के लिए एक योग्य मनुष्य को भोगभूमि से लाया हूँ। वह 'हरि' नाम का मनुष्य तुम्हारा राजा और हरिणी रानी होगी। उनके खाने के लिए मैं कल्पवृक्ष भी लाया हूँ। यह युगल तुम्हारे यहां का अन्न नहीं खाएगा। इनके लिए इन वृक्षों के फल ही ठीक रहेंगे । इन फलों के साथ इन्हें पशु-पक्षियों का मांस भी खिलाया करना और मदिरा भी पिलाना । इससे ये संतुष्ठ रहेंगे और तुम्हारा राज्य यथेच्छ चलता रहेगा।"
युगल को मांस-भक्षी और मदिरा-पान करने वाला बना कर---उनको पतन के गर्त में गिरा कर, नरक में भेजने का देव का उद्देश्य था। इसलिए वह ऐसी व्यवस्था कर के चला गया। देव के उपरोक्त वचनों का मन्त्रियों और सामन्तों ने आदर किया। उन्होंने उस युगल को रथ में बिठा कर उपवन में से राज्यभवन में लाये और हरि का राज्या
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