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लक्ष्मण का कोटिशिला उठाना
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की बात पूछने लगे । उन्होंने रत्नजटी को छाती से लगाकर आलिंगन किया ।
लक्ष्मण का कोटिशिला उठाना सीता के चोर का पता रत्नजटी से पा कर रामभद्रजी ने सुग्रीव आदि से पूछा;“यहां से रावण की लंका कितनी दूर है ?"
"स्वामिन् ! लंका दूर हो या निकट ! मूल प्रश्न तो यह है कि उस प्रचण्ड राक्षस से हम सीताजी को कैसे प्राप्त कर सकेंगे? उस विश्वविजेता के सामने हम तो तण के समान तुच्छ हैं । हमें अपनी शक्ति का विचार सब से पहले करना चाहिये।"
__ “नहीं, नहीं, तुम्हें यह विचार करने की आवश्यकता नहीं ! तुम सब निश्चित रहो। तुम तो मुझे उसे दिखा दो, फिर में उससे समझ लूंगा । जब लक्ष्मण के बाण रावण के रक्त का पान करेंगे, तब तुम उसके सामर्थ्य को देख लोगे 'रामभद्रजी ने कहा ।
“रावण यदि शक्तिशाली होता, तो चोर की भांति धोखा दे कर हरण करता? उसे हमसे युद्ध कर के हमें जीतना था । उस दुष्टात्मा का पतनकाल निकट है । इससे उसे कु ति उत्पन्न हुई और उसने यह अधम कर्म किया । आप उसकी शक्ति की चिन्ता नहीं करें। बाप सभी मात्र दर्शक ही रहें। मैं क्षत्रियोचित युद्ध से उसे मार कर यमधाम पहुंचाऊँगा"--लक्ष्मणजी ने राजाओं को विश्वास दिलाया।
“वीरवर ! आपका कथन सत्य हैं । आप अजेय योद्धा हैं। आपकी शक्ति भी अपूर्व है, किन्तु रावण भी परम शक्तिशाली है । हम आपके सेवक हैं। आपका पक्ष भी न्यायपूर्ण है, फिर भी परिणाम का विचार करके ही काय में प्रवृत्त होना उचित है । बनसवीर्य नाम के ज्ञानी महात्मा ने कहा था कि-"जो पुरुष, कोटिशिला को उठा लेगा, की रावण को मारेगा ।" अतएव यदि आप कोटिशिला को उठालेंगे, तो हमें विश्वास हो जावया । फिर किसी प्रकार का सन्देह नहीं रहेगा।"
लक्ष्मणजी ने स्वीकार किया। सभी वहां से आकाश-मार्ग से चल कर कोटिशिला के पास आये । लक्ष्मणजी ने सरलतापूर्वक तत्काल कोटिशिला उठा ली। उस समय देवों ने बाकाश में 'साधु, साधू' शब्दोच्चार करते हुए पुष्प-वृष्टि की। अब सभी साथियों को लक्ष्मणजी की शक्ति पर पूर्ण विश्वास हो गया । वे समझ गए थे कि इनके हाथों से रावण का विनाश अवश्य ही होगा । वे सभी आकाश-मार्ग से ही किष्किंधा में श्री रामभद्रजी के पास पाये।
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