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हनमान का लंका गमन
अब आगे के कार्य का विचार होने लगा। वृद्धजनों ने कहा
"हमें विश्वास है कि रावण के पतन का काल निकट है और वह आप ही के द्वारा होगा । यद्यपि रावण ने अनीति अपनाई, तथापि हमें तो नीति से ही काम करना है । इसलिए सर्वप्रथम एक दूत के द्वारा रावण के पास अपना सन्देश भेजना चाहिये । यदि वह समझ कर अपने पाप का परिमार्जन कर ले, तो अन्य मार्ग की आवश्यकता नहीं रहे । किन्तु किसी पराक्रमी एवं समर्थ को ही दूत का कार्य सोंपना चाहिये । क्योंकि लंकापुरी में प्रवेश करना और निकलना विकट कार्य है । अपना दूत लंका की राजसभा में जा कर प्रधानमन्त्री विभीषण के सामने सीता के प्रत्यर्पण की माँग करेगा। राक्षस-कुल में विभीषण बड़ा हो नीतिवान् है । विभीषण, रावण से सीता को लौटाने का कहेगा। यदि रावण विभीषण की अवज्ञा करेगा, तो वह तत्काल अपने पास आयेगा।"
___ वृद्धों की बात रामभद्रजी ने स्वीकार की । सुग्रीव ने श्रीभूति को संकेत कर के हनुमान को बुलाया। अप्रतिम तेजस्वी हनुमान तत्काल मन्त्रणा-स्थल पर उपस्थित हुए और रामभद्रजी को प्रणाम किया। हनुमान की ओर संकेत करते हुए सुग्रीव ने रामभद्रजी से कहा;
"देव ! यह पवनंजय के विनयी पुत्र हनुमान, विपत्ति के समय हमारे बन्धु हो कर उपस्थित हुए हैं । हम सभी विद्याधरों में इनके समान तेजस्वी एवं पराक्रमशील अन्य कोई भी नहीं है। इसलिए सीताजी को खोज तथा रावण की सभा में सन्देश पहुँचाने का काम इन्हीं को सोंपना चाहिए।"
--"स्वामिन् ! इस सभा में अनेक बलवान् और प्रतिभा सम्पन्न महानुभाव उपस्थित हैं । ये गव, गवाक्ष, गवय, शरभ, गंधमादन, नील, द्विविद, मैंद, जाम्बवान्, अंगद, नल, नील तथा अन्य महानुभाव उपस्थित हैं। किन्तु महामना सुग्रीवजी को मुझ पर बहुत कृपा है । स्नेह के वशीभूत हो कर ये मेरो प्रशंसा कर रहे हैं। मैं स्वयं भी सेवा के लिए सहर्ष तत्पर है। यदि आज्ञा हो, तो राक्षसद्वीप सहित लंका को ला कर आपके सामने उपस्थित करूँ। बान्धवों सहित रावण को बन्दी बना कर लाऊँ । मेरे लिए करणीय आज्ञा प्रदान करें।"
"वीर हनुमान ! तुम योद्धा हो, अजेय हो, पराक्रमी हो। तुम्हारी शक्ति से मैं परिचित हूँ। तुम सब कुछ कर सकते हो। किंतु अभी तो तुम्हें लंकापुरी में जा कर सीता की खोज करना है । सीता के विश्वास के लिए तुम मेरी यह मुद्रिका लेते जाओ । यह तुम सीता को देना और मेरा सन्देश इस प्रकार कहना;--
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