________________
तीर्थंकर चरित्र
में बैठ कर दण्डकारण्य में आया। जब रावण की दृष्टि श्री रामचन्द्रजी पर पड़ी, तो एक वारगी वह सहम गया। उनके प्रखर तेज को देख कर उसके मन में भय उत्पन्न हुआ और एक ओर प्रच्छन्न खड़ा रह कर सोचने लगा-" इस अप्रतिम योद्धा के पास से महिलारत्न प्राप्त करना अत्यन्त कठिन एवं कष्टकर है । में इस उत्कृष्ट सुन्दरी को कैसे प्राप्त करूँ ।" उसकी बुद्धि कुंठित हो गई। उसने अपनी 'अवलोकिनी' विद्या का स्मरण किया। विद्या देवी के उपस्थित होने पर रावण ने कहा- " सीता हरण में तू मेरी सहायता कर ।" "वासुकी नाग के मस्तक पर से मणि-रत्न लेना कदाचित् सम्भव हो जाय, परन्तु राम की उपस्थिति में सीता को प्राप्त करना सम्भव नहीं हो सकता । फिर भी एक उपाय है । युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय राम ने लक्ष्मण से कहा था कि- " 'संकट उपस्थित होने पर सिंहनाद करना ।" यदि सिह्नाद कर के राम को यहाँ से हटा दिया जाय, तो अकेली रहने पर सीता का साह्रण करना सरल हो जायगा " - देवी ने उपाय बताया। "यह काम भी तुझे ही करना होगा । तू लक्ष्मण के समान स्वर बना कर सिह्नाद कर सकेगी ” – रावण ने यह काम विद्यादेवी को ही करने का कहा ।
19
१४०
देवी वहाँ से युद्ध की दिशा में गई और गुप्त रह कर सिंहनाद किया x । सिंहनाद सुनते ही राम के हृदय में आघात लगा । वे सोचने लगे--" गजेन्द्र मल्ल के समान अजय ऐसे लक्ष्मण को पराजित करने वाला संसार में कोई नहीं है । फिर सिंहनाद क्यों हुआ ?" राम व्यग्र हो उठे । सीता ने भी चिन्तित हो कर कहा; --
'आर्यपुत्र ! लक्ष्मणभाई पर संकट उपस्थित हुआ है । उन्होंने आप से सहायता की याचना करने के लिए सिंहनाद किया है। आप इसी समय अविलम्ब पधार कर उनकी रक्षा करें ।"
66
राम उठ खड़े हुए और धनुष-बाण ले कर लक्ष्मण की सहायता करने चल दिए । वे जाने लगे, तब उन्हें अपशकुन हुए, किन्तु उनकी उपेक्षा करते हुए वे युद्ध-स्थल की ओर गए । रावण ने अकेली सीता को बलपूर्वक उठाया और अपने विमान में बिठा कर ले जाने लगा । सीता पर अचानक विपत्ति आ गई । वह चिल्ला कर सहायता की याचना करने लगी । जटायु पक्षी पास ही था। सीता की चित्कार सुन कर वह बोला- " माता !
x 'चउपन्न - महापुरिस चरियं' में सिह्नाद के स्थान पर " मारीय-मयकयाराबवंचना" लिखा है, इस प्रकार यहां भेद है ।
● राम द्वारा कार लगाने और रावण के योगीवेश में आ कर भिक्षा के मिस बाहर बुला कर हरण करने का उल्लेख त्रि० श० पु० च० और 'चउपन्न महापुरिस चस्यिं ' में नहीं है &
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org