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काम-पीड़ित चन्द्र नखा
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तीन दिन ही शेष रह गए थे । इस साधना के बल से सूर्यहास खड्ग आकाश से नीचे उतरता हुआ वंश-गव्हर के निकट आ गया और अपना तेज तथा सुगन्ध फैलाने लगा। उस समय रामभद्रा दि भी उसी क्षेत्र में, कुछ दूर ठहरे हुए थे । लक्ष्मणजी इधर-उधर घुमदे हुए उस वंशजाल के निकट आ गए । उनकी दृष्टि अपने तेज से प्रकाशित सूर्यहास खड्ग पर पड़ी । उन्होंने उत्सुकतापूर्द क उस खड्ग को ग्रहण किया और म्यान से बाहर निकाल कर उसकी तीक्ष्णतर की परीक्षा के लिए वंशजाल पर हाथ चला दिया । प्रहार से वंशजाल बड़ी सरलता से कट गई और साथ ही मंबू क का मस्तक भी कट कर लक्ष्मणजी के निकट गिर गया । रक्त की 'शरा बह चली । लक्ष्मणजी यह देख कर चौके । उन्होंने वंशजाल में बुम कर देखा, तो वटवृक्ष की शारका से लटकता हुअा थंडक का धड़ दिखाई दिया। उन्हें पश्चात्ताप हुआ--"अरे, एक निरपराध मनुष्य का वा हो गया । यह साधक, सूर्यहास घड्ग की साधना कर रहा था । इसका महोरथ पूर्ण होने ही वाला था कि मेरे हाथ से इसकी मृत्यु हो गई । धिक्कार है मेरे इस अविचारी दुष्कृत्या को " वे रामभद्रजी के पास आये और अपने पार की आलोचना करते हुए वह खड्स इताया । रामचन्द्र जी ने कहा-- “हे कीर ! यह सूर्य हास खड्ग है । इसके साधक को तुमने मार डाला। इसका उत्तरसाधक भी कहीं निकट ही होगा ।"
___ कर्म को गति विचित्र है । शंबूक बारह वर्ष तक कठोर साधना कर रहा था। उसे साधना का फल प्राप्त होने ही वाला था कि मृत्यु ने अपना शास बना लिया और लक्ष्मणजी को बिना साइना के ही शनायास फल प्राप्त हो गया । यह सब शुभाशुभ कर्म का फल है।
काम-पीड़ित चन्द्रनखा
रावण की दहिन एवं विद्याधर की रानी चन्द्रनखा को अपने पुत्र शंबूक की साधना पूर्ण होने का समय स्मरण हो आया । वह पूजा और भोजन-पान की सामग्री ले कर साधना स्थान पर पहुंची। वहाँ पूत्र के स्थान पर उसका कटा हआ, कुण्डलयक्त मस्तक आदि देख कर उसे शंभीर आघात लगा । हाथ की सामग्री छूट कर गिर गई बोर "हा, पुत्र ! हा, वत्स !" कह कर वह विलाप करने लगी । शोक का भार कम होने पर उसने सोचा---'एसा कोन दुष्ट है, जिसने आज ही मेरे पुत्र का वध कर दिया। वह उसकी खोज करने के लिए पृथ्वी पर चरणचिन्ह देखने लगी । तत्काल ही इसे मनुष्य के पाँको
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