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________________ १३० तीर्थकर चरित्र अमृतसर के 'वसुभूति' नाम का एक ब्राह्मण मित्र था। अमृतसर की पत्नी वसुभूति ब्राह्मण पर आसक्त थी। वह इतनी मोह-मढ़ बनी कि अमृतसर को मार कर वसुभूति के साथ रहना चाहती थी। वसुभूति भी उपयोगा पर आसक्त था। राजाज्ञा से अमृतसर का विदेश जाने का प्रसंग आया । वसुभूति भी उसके साथ गया। उसने अनुकूल अवसर देख कर अमृतसर को मार डाला। इसके बाद वह लौट आया और लोगों में कहने लगा कि-- “अमृतसर ने अपने आवश्यक एवं गुप्त कार्य के लिए मुझे लौटा दिया और खुद आगे बढ़ गया ।" उसने उपयोगा से मनोरथ सफल होने की बात कही । उपयोगा ने कहा-- "इन दोनों छोकरों को भी मार डाला जाय, तो फिर कोई बाधा नहीं रहेगी। ये छोकरे हमारे लिए दुःखदायक बन जावेंगे। इसलिए इस बाधा को भी हटा दो, जिससे हम निराबाध रह कर सुख भोग सकेंगे।" __वसुभूति ने स्वीकार कर लिया। वह उन दोनों बन्धुओं को समाप्त करने का अवसर देखने लगा । यह बात वसुभूति की पत्नी को मालूम हो गई । उसने चुपके से उन दोनों भाइयों को सावधान कर दिया । उदित और मुदित वसुभूति को पित-घातक तथा दोनों की घात की ताक में रहने वाला जान कर क्रुद्ध हुए। उदित ने वसुभूति को मार डाला। वह मृत्यु पा कर नवपल्ली में म्लेच्छ कुल में उत्पन्न हुआ। कालान्तर में मतिवर्द्धन मुनिराज से धर्मोपदेश सुन कर राजा ने प्रव्रज्या ग्रहण की । उसके साथ मुदित और उदित भी दीक्षित हो गए । विहार करते मार्ग भूल कर वे नवपल्ली में चले गए। वसुभूति का जीव जो म्लेच्छ हुआ था, मुनियों को देख कर कोधित हो गया । उस पर पूर्व का वैर उदय में आ गया था। वह उन मुनियों को मारने के लिए तत्पर हुआ, किंतु म्लेच्छ नरेश ने उसे रोका । म्लेच्छ नरेश अपने पूर्वभव में पक्षी था और उदित तथा मुदित कृषक थे। उन्होंने पक्षी को शिकारी के पास से छुड़ा लिया था । पक्षी को अपने रक्षक के प्रति शुभ भावना थी। वह इस भव में उदित हो कर मुनियों का रक्षक बना । दोनों मुनियों ने चिरकाल संयम पाला और समाधिमरण मर कर महाशुक्र देवलोक में ‘सुन्दर' और 'सुकेश' नामक देव हुए । वसुभूति का जीव भवभ्रमण करता हुआ पुण्ययोग से मनुष्य-भव पाया और सन्यासी बन कर तप करने लगा। वहाँ से मर कर ज्योतिषी देवों में धूमकेतु' नाम का मिथ्यादृष्टि दुष्ट देव हुआ। उदित और मुदित के जीव महाशुक्र देवलोक से चव कर इस भरतक्षेत्र के रिष्टयुर नगर के प्रियंवद नरेश की पद्मावती रानी की कुक्षि से रत्नरथ और चित्ररथ नाम के पुत्र हुए और धूमकेतु भी देवभव पूरा कर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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