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मुनि कूल भूषण देशभूषण
लक्ष्मणजी का स्वागत करने को तत्पर हो गए । लक्ष्मणजी ने कहा कि मेरे ज्येष्ठ पूज्य उद्यान में हैं । उन्हें छोड़ कर मैं आपका आतिथ्य ग्रहण नहीं कर सकता ।' जब राजा ने जाना कि -'ये तो दशरथ नन्दन राम-लक्ष्मण हैं, तो उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही । वह तत्काल उद्यान में आया और बड़े आदर के साथ राम-सीता को ले कर राजभवन में आया । रामचन्द्रादि कुछ दिन वहाँ रहे और फिर यात्रा प्रारम्भ हो गई । लक्ष्मणजी ने यहाँ भी कहा--' में लौटते समय लग्न करूँगा ।"
मुनि कुलभूषण देशभूषण
क्षेमांजलि नगरी से निकल कर रामभद्रादि वंशशैल्य पर्वत की तलहटी पर बसे हुए वंसस्थल नामक नगर के निकट आए। उन्होंने देखा - वहां के नागरिक और राजा, सभी भयभीत हैं । राम ने एक मनुष्य से कारण पूछा। के समय इस पर्वत पर भयंकर ध्वनि होती है । इससे और नगर छोड़ कर अन्यत्र रात व्यतीत करते हैं। लोग आशंका से सभी लोग चिंतित हैं ।"
उसने कहा--" तीन दिन से रात्रि यहां के सभी लोग भयभीत हैं उद्विग्न रहते हैं । अनिष्ट की
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नगरजनों की कष्टकथा से द्रवित तथा लक्ष्मण से प्रेरित हो कर राम पर्वत पर चढ़े । उन्होंने पर्वत पर ध्यानस्थ रहे हुए दो मुनियों को देखा । वे मुनिवरों को भक्तिपूर्वक वन्दन-नमस्कार कर के बैठ गए। रात्रि के समय वहाँ अनलप्रभ नाम का एक देव आया । उसने भयंकर बेताल का रूप बनाया और अनेक बेतालों की विकुर्वणा की । वह देव घोर गर्जना और भयंकर अट्टहास करता हुआ मुनिवरों पर उपद्रव करने लगा । उस दुराशय दानव की दुष्टता देख कर राम-लक्ष्मण सन्नद्ध हो गए। सीता को मुनिवरों के निकट बिठा कर वे उस दुष्टात्मा बेताल पर झपटे । रामलक्ष्मण के साहस और प्रभाव से उदभ्रांत हुआ देव, भाग कर स्वस्थान चला गया । दोनों महात्मा थे । उनके बातिकर्म झड़ रहे थे । वे धर्मध्यान से शुक्लध्यान में प्रविष्ट हो कर निर्मोही हो गए और घातिकर्मों को नष्ट कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी बन गए । रामभद्रजी ने केवलज्ञानी भगवंत को नमस्कार कर के उपद्रव का कारण पूछा । सर्वज्ञ भगवान् कूल भूषणजी ने कहा ; -- " पद्मिनी नगरी में विजयपर्वत राजा राज करता था । उसके 'अमृतसर' नामक दूत था । उपयोगा नाम की दूतपत्नी से 'उदित' और 'मुदित' नाम के दो पुत्र हुए थे !
निर्भीक हो कर ध्यान में लीन
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