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तीर्थंकर-चरित्र
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भ. मुनिसुव्रत स्वामी
पूर्वभव
इस जम्बूद्वीप के अपर-महाविदेह स्थित 'भरत' नाम के विजय में 'चम्पा' नाम की एक विशाल नगरी थी। सूरश्रेष्ठ नामका श्रेष्ठ राजा राज्याधिपति था। वह दानवीर रणवीर, आचारवीर और धर्मवीर था। उनके श्रेष्ठ पराक्रम से प्रभावित हो कर अन्य सभी राजा उसके सामने झुकते थे। एकदा नन्दन नाम के श्रमण-श्रेष्ठ चम्पा नगरी के उद्यान में पधारे। वन्दना-नमस्कार करके धर्मोपदेश का श्रवण किया। राजा का उत्थानकाल आ गया था। वह विरक्त हो कर प्रव्रजित हो गया और उत्तर रीति से चारित्र का पालन कर तीर्थंकर नाम-कर्म को निकाचित कर के, प्राणत नामक दसवें स्वर्ग में गया । स्वर्ग से च्यव कर वह हरिवंश में उत्पन्न हुआ।
प्रसंगोपात हरिवंश की उत्पत्ति बतलाई जाती है ।
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