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पठ
क्रमांक विषय
पृष्ठ क्रमांक विषय ३२४ राजमती को अमंगल की आशंका ५८६ । ३४८ भविष्य-कथन
६३० ३२५ पशुओं को अभयदान । वरराज
३४९ श्रीकृष्ण की उद्घोषणा
६३१ लौट गए
५८८ | ३५० महारानियों की दीक्षा और पुत्रियों ३२६ राजमती को शोक और विरक्ति ५९१ को प्रेरणा ३२७ रथनेमि की राजमती पर आसक्ति ५६३ | ३५१ प्रव्रज्या की ओर मोड़ने का प्रयास ६३३ ३२८ दीक्षा केवलज्ञान और तीर्थकर-पद ५९५ ३५२ थावच्चापुत्र की दीक्षा
६३५ ३२९ धर्म-देशना
५९७ / ३५३ सुदर्शन सेठ की धर्मचर्चा और प्रतिबोध ३३० राजमती की दीक्षा
६०२ / ३५४ परिव्राजकाचार्य से चर्चा ३३१ रथनेमि चलित हुए
६०३ | ३५५ सहस्र परिव्राजक की प्रव्रज्या ६४३ ३३२ नारद-लीला से द्रौपदी का हरण ६०५ | ३५६ थावच्चापुत्र अनगार की मुक्ति ६४४ ३३३ पद्मनाभ द्वारा द्रौपदी का हरण
३५७ शैलक राजर्षि की दीक्षा
६४४ ३३४ पद्मनाभ की पराजय और द्रौपदी का ३५८ शैलक राजर्षि का शिथिलाचार ६४५ प्रत्यपर्ण ६०९ | ३५६ शैलकराजर्षि का प्रत्यावर्तन
६४७ ३३५ वासुदेवों का ध्वनि-मिलन ६१२ / ३६० श्रीकृष्ण ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा ६४९ ३३६ पाण्डवों को देश-निकाला
६१३ ३६१ ढंढण मुनिवर का अन्तराय-कर्म ३३७ छह पुत्र सुलसा के या देवकी के ? ६१५ | ३६२ जरदकुमार और द्वैपायन का वनगमन ६५१ ३३८ देवकी देवी का सन्देह
६१६ | ३६३ कुमारों का उवद्रव और ऋषि का निदान ६५२ ३३९ सन्देह-निवारण और पुत्र-दर्शन ६१७ | ३६४ द्वारिका का विनाश ३४० किस पाप का फल है ? ६१८ | ६६५ हरि-हलधर पाण्डव-मथुरा की ओर ६५३ ३४१ देवकी की चिन्ता । गजसुकुमाल
६६६ अंतिम युद्ध में भी विजय
६५६ का जन्म
६१६ | ३६७ भाई के बाण से श्रीकृष्ण का अवसान ६५७ ३४२ गजसुकुमाल कुमार की प्रव्रज्या और ३६८ बलदेवजी का भ्रातृ-मोह
३५९ मुक्ति
६२१ ३६९ देव द्वारा मोह-भंग ३४३ श्रीकृष्ण की वृद्ध पर अनुकम्पा ६२४ ३७० बलदेवजी सुथार और मृग का स्वर्गवास ६६२ ३४४ वैर का दुर्विपाक ६२७ ३७१ पाण्डवों की मुक्ति
६६४ ३४५ गुण-प्रशंसा
६२७ ३४६ भेरी के साथ भ्रष्टाचार
६२८ ३४७ सदोष-निर्दोष चिकित्सा का फल ६२६
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