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अतिवीर्य से युद्ध
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है कि श्री लक्ष्मणजी जैसे जामाता और आप जैसे समधी मिले । अब कृपा कर महालय में पधारे।"
महीधर नरेश, सम्मानपूर्वक रामभद्रादि को राजभवन में लाये । वे सुखपूर्वक वहाँ रहने लगे।
अतिवीर्य से युद्ध
कारण है ?"
एक दिन नंद्यावर्तपुर के अतिवीर्य नरेश का दूत, महीधर नरेश की राजसभा में आ कर निवेदन करने लगा;--
___ “मेरे स्वामी राजाधिराज अतिवीर्यजी का, अयोध्यापति भरत नरेश से विग्रह हो गया है । युद्ध की तैयारियां हो चुकी है । मैं आपको सेना-सहित पधारने का आमन्त्रण ले कर उपस्थित हुआ हूँ । पधारिये । भरतनरेश की ओर भी बहुत से राजा आये हैं । इसलिए आपको हमारी सहायता करनी चाहिए।"
लक्ष्मणजी ने पूछा--"तुम्हारे राजा को भरत नरेश से युद्ध करने का क्या
--"मेरे स्वामी महाप्रतापी और अनुपम शक्तिशाली हैं । अन्य कई नरेश उनका अधिपत्य स्वीकार करते हैं, किन्तु अयोध्या नरेश उनकी शक्ति मान्य नहीं करते । इसीसे यह विग्रह उत्पन्न हुआ है"--दूत ने कहा ।
__ --"क्या भरत नरेश में इतनी शक्ति है कि जिससे वे अतिवीर्य के साथ युद्ध करने को तत्पर हो गए"--रामचन्द्रजी ने पूछा।
___--"मेरे स्वामी तो महाबली हैं ही, भरतजी भी सामान्य नहीं हैं। दोनों में से किसकी विजय होगी–कहा नहीं जा सकता"--दूत ने कहा।
महीधर नरेश ने दूत को बिदा करते हुए कहा--" मैं अपनी सेना ले कर आ रहा हूँ, तुम जाओ।"
दूत को रवाना कर के महीधर नरेश ने श्रीरामभद्र से कहा--"मुझे लगता है अयोध्यापति के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आमन्त्रित करने वाले अतिवीर्य के दुदिन आ गये हैं। मैं भरतजी के शत्रु ऐसे अतिवीर्य के साथ युद्ध कर के उसका मद चूर्ण करूँगा।"
"नहीं राजन् ! आप यहीं रहें । मैं आपके पुत्रों के साथ सेना ले कर जाऊँगा"-- रामभद्र ने कहा।
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