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यक्ष द्वारा रामपुरी की रचना
चलते-चलते तीनों एक महावन में पहुँच गए । वर्षाऋतु का आगमन हो चुका था। व हो रही थी। रामादि प्रवासीत्रय वर्षा से बचने के लिए विशाल वटवृक्ष के नीचे
आ कर ठहरे । उन्होंने इस वृक्ष को उपयुक्त समझ कर भाई से कहा--"बन्धु ! अब वकाल इस वृक्ष के नीचे ही व्यतीत करना ठीक रहेगा।" लक्ष्मण और सीताजी भी सहमत हो गए। उस वक्ष पर 'इमकर्ण' नाम का यक्ष रहता था। यक्ष ने यह बात सनी अ र उनकी भव्य आकृति देखी, तो भयभीत हो गया। वह अपने स्वामी गोकर्ण यक्ष के पास गया और विनय पूर्वक बोला--
“स्वामिन् ! मैं विपत्ति में पड़ गया हूँ। दो अप्रतिम-तजस्वी पुरुष और एक महिला मेरे आवास पर आये हैं । वे पूरा वर्षाकाल वहीं बिताना चाहते हैं । इससे मैं चिन्तित हूँ। अब आप ही मेरी समस्या का हल करें।"
गोकर्ण ने इभकर्ण की बात सुन कर, अवधिज्ञान से आगत प्रवासियों का परिचय जाना और प्रसन्नतापूर्वक बोला;--
__ "भद्र ! तुम भाग्यशाली हो । तुम्हारे यहां आने वाले महापुरुष हैं । उनमें आठवें बलभद्र और वसुदेव है और अशुभोदय से प्रवासी दशा में हैं । ये सत्कार करने योग्य हैं। चल में भी चलता हूँ।"
गोकर्ण यक्ष, इभकर्ण के साथ वहां आया और वैक्रिय-शक्ति से वहाँ एक विशाल नगरी का निर्माण कर दिया। इतना ही नहीं, उसने नगरी को सभी प्रकार के साधनों से सुसज्जित एवं धन-धान्यादि से परिपूर्ण कर दी । हाट बाजार आदि से भरपूर उस नगरी का नाम--- रामपुरी' रखा गया । प्रातःकाल मंगल-वाद्य सुन जाग्रत हुए रामभद्रादि ने जब अपने सामने वीणाधारी यक्ष और महानगरी देखी, तो आश्चर्य करने लगे । यक्ष ने निवेदन किया--
"स्वामिन् ! यह नगरी आपके लिए हैं। मैं गोकर्ण यक्ष हैं। आप हमारे अतिथि हैं । आप जबतक यहाँ रहेंगे, तबतक में परिवार सहित आपकी सेवा में रहूँगा।
रामभद्रादि आनन्दपूर्वक उस देव-निर्मित रामपुरी में रहने लगे और यक्ष द्वारा प्रस्तुत धनधान्यादि का उपभोग एवं दान करते हुए समय व्यतीत करने लगे।
कपिल का भाग्योदय वह कपिल ब्राह्मण, हवन के लिए समिधा एवं पुष्प-फल आदि लेने के लिए वन
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