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________________ सिंहोदर का पराभव ११३ पालन करना तुम्हारा कर्तव्य है । तुम मेरी आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकते ।" __ उन्होंने सीताजी को संकेत किया । वे जल का कलश भर लाई । रामचन्द्रजी ने भरतजी को पूर्व की ओर मुंह कर के बिठाया और अपने हाथों से उनके मस्तक पर जलधारा दे कर उन्हें 'अयोध्यापति' घोषित किया । जयध्वनि की और विसर्जित किया है। सभी जन दुखित-हृदय से चले जाते हुए रामत्रय को देखने लगे। उनके दृष्टि ओझल होते ही भरतादि उदास हृदय से अयोध्या आये । भरतजी से रामचन्द्र के समाचार जान कर दशरथजी ने कहा--"पुत्र ! राम आदर्शवादी है । अपने वंश के गौरव की रक्षा करने में वह अपना जीवन भी दे सकता है । अब तुम राज्य-धुरा को धारण करो और मुझे निवृत्त कर के संयम-धुरा धारण करने दो।" भरतजी, कर्तव्य-बुद्धि से राज्य का संचालन करने लगे। दशरथजी, महामुनि सत्यभूतिजी के समीप प्रव्रज्या स्वीकार कर के साधना में जुट गए । सिंहोदर का पराभव भरतजी का वन में ही राज्याभिषेक कर रामत्रय दक्षिण की ओर चल दिये। चलते-चलते वे महामालव भूमि में पहुँचे । एक वट वृक्ष के नीचे बैठ कर राम ने भरत से कहा; यह प्रदेश अभी थोड़े दिनों से उजाड़ हुआ लगता है । देखो, ये उद्यान सूख रहे हैं, किन्त पानी की तो न्यूनता नहीं लगती । इक्षु के खेत सूख रहे हैं, खलों में धान्य यों ही पड़ा है, जिसे सम्भालने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा । लगता है कोई विशेष प्रकार का उपद्रव इस प्रदेश पर छाया हुआ है । उसी समय उधर से एक पथिक निकला । राम ने उससे पूछा--"भद्र ! इस प्रदेश में यह श्मशान-सी निस्तब्धता क्यों है ? बिना सम्भाल के ये खेत क्यों सूख रहे हैं ? इन खलों के स्वामी कहां चले गए ? यह प्रदेश उजाड़ जैसा वयों लग रहा है ?" पथिक ने कहा--" यह महामालव का अवंति देश है । इसका सिंहोदर नाम का महा पराक्रमी शासक है । दशांगपुर नगर भी इसके राज्य में ही हैं, किंतु वहाँ इसका सामन्त अन्य ग्रंथों में भरत द्वारा रामचन्द्रजी की चरणपादुका राज्य-सिंहासन पर स्थापित करने और रामचन्द्रजी के नाम से, स्वयं अनवर की भांति राज्य चलाने का अधिकार है, किंतु त्रि. श.पु.. में ऐसा उल्लेख नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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