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________________ तीर्थंकर चरित्र हूँ। किंतु तेरे चले जाने से मेरा सहारा ही क्या रहेगा ? पुत्री ! मेरा हृदय कितना कठोर है ? यह फट क्यों नहीं जाता ? हा, मैं कितनी दुर्भागिनी हूँ ! "मातेश्वरी ! आप प्रसन्न हृदय से मुझे बिदा कीजिए । आपका शुभाशीष मेरा रक्षक होगा । जहाँ आर्यपुत्र हैं, वहाँ विकट वन भी मेरे लिये नन्दन-कानन सम सुख-दायक होगा। मैं कष्टों को भी प्रसन्नतापूर्वक सहन कर सकूँगी। उनके बिना यहां के सुख मेरे मन को शान्ति नहीं दे सकेंगे । अनुज्ञा दीजिए माता ?"--सीता ने याचक नेत्रों से सीख माँगी। महारानी ने गदगद् कंठ से कहा--"जाओ पुत्री ! पति का अनुगमन करो। कुलदेवी तुम्हारी रक्षा करेगी। शासन-देव तुम्हारे सहायक होंगे । तुम्हारा धर्म तुम्हारी सभी बाधाएँ दूर करेगा। वनवास की अवधि पूर्ण कर सकुशल आओ । ये आँखे तुम्हारे मार्ग में बिछी रहेगी।" युवराज्ञी सीताजी, रामचन्द्रजी के पीछे-पीछे चल कर राज-भवन के बाहर निकली। राम और सीता के वन-गमन की बात नगर में फैल चुकी थी। हजारों नर-नारी बाहर जमा हो गए थे । जनता इस अप्रिय प्रसंग से क्षुब्ध थी। राम का वनगमन उन्हें अपने प्रिय-वियोग-सा खटक रहा था। सभी की आँखों से आँसू झर रहे थे । लोग गद्गद् कंठ से राम का जय-जयकार कर रहे थे। महिलाएँ सीता की जय बोलती हुई उसकी पति-भक्ति त्याग और उत्तम शील की प्रशंसा कर रही थी। राम और सीताजी नगर-जनों के विरही हृदय से निकली हुई भक्तिपूर्वक शुभकामनाओं को नम्र-भाव से स्वीकार करते हुए नगर के बाहर निकले। लक्ष्मणजी भी निकले ज्येष्ठ-भ्राता रामचन्द्रजी के वनवास का दुःखद वृत्तांत लक्ष्मणजी ने विलम्ब से सुना । सुनते ही उनके हृदय में क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो गई । उन्होंने सोचा-"पिताजी की सरलता का विमाता कैकयी ने अनुचित लाभ लिया। स्त्रियाँ मायाचार में प्रवीण होती है। भाई भरत को राज्य दे कर पिताश्री तो ऋण-मुक्त हो जाएँगे उसके बाद में भरत को राज्य-च्युत कर के ज्येष्ठ बन्धु को प्रतिष्ठित कर दूंगा, तो पुनः स्थिति यथावत् हो जायगी।" किन्तु जब उन्होंने पिताजी के हृदय की दशा और रामचन्द्रजी के अस्वीकार की आशंका पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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