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सीता भी वनवास जा रही है
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रहेगा? नहीं, मेरे लिए मृत्यु ही सुखकर है। बस मुझे मर जाने दो, कोई मत रोको । ऐना करो कि ये प्राण शीघ्र ही इस शरीर से निकल जायँ--महारानी के हृदय में विरहवेदना समा नहीं रही थी।
___ "माता ! आप वीरांगना हैं और वीरमाता हैं । आपकी सहन-शक्ति तो अजोड़ एवं आदर्श होनी चाहिए । सामान्य महिला की भाँति अधीर एवं कातर होना और रुदन करना आपको शोभा नहीं देता। आर तो सिंहनी के समान हैं। सिंह-शावक बड़ा हो कर स्वतन्त्रअकेला ही--वन-विहार करता है । सिंहनी को उसकी कोई चिन्ता नहीं होती। आप स्वस्थ हो जाइए और पिताश्री की ऋण-मुक्ति में एक पल का भी विलम्ब मत कीजिए। इस प्रकार माता को धैर्य बँधा कर और प्रणाम कर, वे कैकयी के पास पहुँचे । उन्हें प्रणाम किया और वन में जाने की आज्ञा मांगी।
कैकयी ने कहा--" राम ! तुम आदर्श पुत्र हो । प्रसन्नता से जाओ। तुम्हारे लिए सभी स्थान आनन्ददायक और मंगलमय होंगे । संसार के पुत्रों और बन्धुओं के सामने तुम्हारा आदर्श लाखों वर्षों तक रहेगा । तुम महान् हो । मैं क्षुद्र नारी हूँ। अपने स्वार्थ को मैं नहीं रोक सकी । मेरे विषय में अपने मन में दुर्भाव मत लाना ।"
इसके बाद राम, अन्य विमाताओं के पास पहुँचे और प्रणाम कर चल निकले।
सीता भी वनवास जा रही है
राम के वनगमन की बात युवराज्ञी सीता ने सुनी, तो वह भी तैयार हो गई। उसने दूर से ही दशरथजी को प्रणाम किया और कौशल्या के पास पहुँची । कौशल्या ने सीता को छाती से लगाते हुए कहा--
"बेटी ! पुत्र तो मुझे छोड़ कर जा रहा है, अब तू कहां चली ? ऋण का भार तो राम के वन जाने से ही उतर जायगा ! तेरे जाने की क्या आवश्यकता है ? तू कोमल है, सुकुमार है । राम ने तो युद्ध किये हैं, वन में भी घुमा है और वह वीर है, नरसिंह है। तू वन-गमन के योग्य नहीं । तू किस प्रकार चल सकेगी ? भूख-प्यास के कष्ट सहन कर सकेगी ? तुझ से शीत, ताप और वर्षा के असह्य दुःख कैसे सहन हो सकेंगे ? तेरे यहां रहने से मुझे कुछ धीरज रहेगी, किन्तु पति का अनुगमन कर के तू एक आदर्श पत्नी का कर्तव्य पालन कर रही है । मैं तुझे कैसे रोकू । न हां करते बनता है, ना ना कह सकती
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