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________________ १०४ तीर्थकर चरित्र राम ने दशरथ जी से कहा--"पूज्य ! मेरे यहाँ रहते, भरत राज्यासीन नहीं होगा इससे न तो आपका वचन पूरा होगा और न माता की इच्छा पूरी होगी । आप पर ऋण बना रहेगा । अतएव में वन में जाता हूँ। आशीर्वाद दीजिए और अपने मन को प्रसन्न रखिये।" महारानी कौशल्या पर वज्राघात राम की बात सुन कर दशरथजी अवाक रह गए। उन्हें कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। राम को वन में जाने की आज्ञा वे कैसे दें ? किस प्रकार पुत्र-विरह सहन करे? उनका हृदय बैठा जा रहा था। रामचन्द्र, पिता की चरणरज, धनुष और बाणों से भरा हुआ, तूणीर ले कर चल दिए । राम के चलते ही दशरथजी मूच्छित हो कर गिर पड़े। भरत छाती-फाड़ रुदन करने लगे। रोते-रोते भरत ने दशरथजी को सँभाल। और पलंग पर लिटाया। राम वहाँ से निकल कर अपनी माता कौशल्या के पास गए । उनके चरणों में प्रणाम किया और बोले-- __"मातेश्वरी ! पिताश्री ने माता कैकयी को युद्ध काल में वरदान दिया था । यह पिताश्री पर ऋण था। अब ऋण उतारने का समय आ गया है । मेरा सौभाग्य है कि उस ऋण से मुक्त होने का निमित्त में हुआ हूँ। छोटी माता, भाई भरत का राज्याभिषेक कराना चाहती है । भरत अस्वीकार करता है । वह मेरे रहते राज्यासीन होना स्वीकार नहीं करता । इसलिए मैं वन में जा रहा हूँ। माता ! प्रसन्न हो कर आज्ञा प्रदान करो और भरत को अपना ही पुत्र समझो। आपकी भरत पर पूरी कृपा रहे, और मेरे वनगमन से आप किचित भी चितित या कायर भाव नहीं लावें । मझे बडी प्रसन्नता है कि मैं आज अपने विशिष्ठ कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। आशीष दो माँ !" - वज्र से भी अधिक आघात-कारक, राम के वचन सुन कर महारानी कौशल्या मूच्छित हो गई । दासियों ने चन्दन-जल का सिंचन कर के उनकी मूर्छा दूर की। सावधान होते ही रुदन करती हुई महारानी कहने लगी-- “अरे, तुमने मुझे सावधान क्यों किया? मैं मूर्छा में ही क्यों न मर गई ? जीवित रह कर जलते रहने में कौन-सा सुख है ? पति संसार त्याग रहे हैं और पुत्र गृह त्याग रहा है । फिर में जीवित रह कर क्या करूँगी ? मेरा हृदय किस आधार से शान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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