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________________ भामण्डल का भ्रम मिटा उस समय निग्रंथ मुनिराजश्री सत्यभूतिजी, नगर के बाहर पधारे । वे चार ज्ञान के धारक थे । दशरथ नरेश पुत्रादि परिवार सहित मुनिवंदन करने आये और धर्मदेशना सुनने लगे। सीता का राम के साथ विवाह होने से भामण्डल को गंभीर आघात लगा था। वह उदासीन ही रहा करता था। उसका मन कहीं नहीं लग रहा था। पुत्र की यह दशा देख कर चन्द्रगुप्त नरेश चिंतित थे। वे पुत्र और अन्य विद्याधर नरेशों के साथ अपने स्थान पर आने के लिए विमान द्वारा चले । पुत्र की उदासी मिटाने के लिए वे निकट के दर्शनीय प्राकृतिक स्थानों को देखते हुए आ रहे थे। जब वे अयोध्या के उपवन पर हो कर जाने लगे, उन्हें मनुष्यों की विशाल सभा और मुनिराज धर्मोपदेश देते हुए दिखाई दिये। उन्होंने विमान नीचे उतारा और मुनिराज की वन्दना करके देशना सुनने बैठ गए। देशना पूर्ण होने पर, भामण्डल की जिज्ञासा पूर्ण करते हुए महात्मा ने चन्द्रगति, पुष्पवती भामण्डल और सीता के पूर्वभवों का वृत्तांत सुनाया और यह भी कहा कि 'सीता और भामण्डल तो इस भव के भी सगे और एक साथ जन्मे हुए भाई-बहिन हैं । भामण्डल का जन्म होते ही अपहरण हो गया था,' इत्यादि समस्त वृत्तांत सुनाया जिसके सुनते ही भामण्डल मूच्छित हो कर गिर पड़ा। कुछ देर में सावचेत होने पर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसने तत्काल सीता और रामचन्द्र को प्रणाम किया। सीता के भी हर्ष का पार नहीं रहा । उसका खोया हुआ भाई मिल गया। भामण्डल कहने लगा---"अच्छा हुआ कि मैं अज्ञान से महापाप में पड़ते हुए बच गया।" मुझे लज्जा आ रही है, अपने पापपूर्ण विचार और कृत्य पर । मैं इस पाप को धोना चाहता हूँ।" चन्द्रगति नरेश ने विद्याधरों को भेज कर मिथिला से जनक नरेश और विदेहा रानी को बुलाया। माता-पिता को अपना खोया हुआ पुत्र, एक योद्धा राजकुमार के रूप में मिला । विदेहा का पुत्र-स्नेह उमड़ा । उसके स्तनों में दूध आ गया। सर्वत्र हर्ष ही हर्ष छा गया। भामण्डल ने भी अपने वास्तविक माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया। चन्द्रगति नरेश ने राज्यभार भामण्डल को दे कर आचार्य श्री सत्यभूतिजी के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और शेष सभी अपने-अपने स्थान पर गये। दशरथजी का पूर्वभव दशरथ नरेश ने महर्षि सत्यभूतिजी से अपना पूर्वभव पूछा । मुनिराज श्री ने कहा; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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