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________________ दशरथ नरेश की विरक्ति दशरथ नरेश के पास इक्षु-रस के घड़े • भेंट में प्राप्त हुए। उन्होंने वे घड़े अंत:पुर में प्रत्येक रानी के पास भेजे । महारानी के पास रस-कुंभ लाने वाला, अन्तःपुरसेवक वृद्ध एवं जर्जर शरीर वाला था और धीरे-धीरे चल रहा था। अन्य रानियों की चपलदासियें शीघ्रतापूर्वक रस-कुंभ ले गई। जब महारानी कौशल्या देवी ने देखा कि'और सभी रानियों को स्वामी की ओर से रसकुंभ मिले, परंतु में वंचित रह गई तो उन्हें अपना अपमान लगा। वह सोचने लगी--" स्वामी मुझ पर रुष्ट हैं, इसलिए मुझे रस-दान से वंचित रखा। सभी सौतों के सामने मुझे अपमानित किया। अब मेरा जीवित रहना ही व्यर्थ है । अपमानित हो कर जीवित रहने से तो मरना ही अच्छा है।" इस प्रकार विचार कर आत्मघात के लिए फाँसी लगा कर मरने का प्रयत्न करने लगी । वह ऐसा कर ही रही थी कि नरेश वहाँ आ पहुँचे । वे महारानी की दशा देख कर चकित रह गए। उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया, धैर्य दे कर अप्रसन्नता का कारण पूछा । जब रस-कुंभ से वंचित रहने के कारण अपमानित अनुभव करने की बात खुली, तो दशरथजी ने कहा-“वाह, यह कैसी बात है ! मैने सब से पहले तुम्हारे लिए ही भेजा था---कंचुकी के साथ । कहाँ रह गया वह आलसी ? ठहरो, मैं उसकी खबर लेता हूँ---अभी।" वे उठने ही वाले थे कि उन्हें घड़ा उठाये हुए कंचुकी आता दिखाई दिया। वह वृद्ध, गलित-गात्र, शिथिल-अंग, धुंधली आँखें, पोपला मुंह, हाँफते-रुकते आ रहा था। राजा ने उससे पछा--"अरे, इतनी देर क्यों कर दी तेने ?" वह हाथ जोड कर गिडगिडाता हुआ बोला-"स्वामिन् ! विलम्ब का दोष मेरा नहीं, इस बुढ़ापे का है । यह बुढ़ापा बैरी, सेवा में बाधक बन रहा है। मैं विवश हूँ महाराज ! यह दुष्ट किसी को नहीं छोड़ता चाहे राव हो या रंक । लम्बी आयु में बुढ़ापा बैरी बन ही जाता है-पालक !" राजा विचार में पड़ गए--"क्या वृद्धावस्था अनिवार्य है ? मैं भी ऐसा बूढ़ा हो जाउँगा ? मेरी भी ऐसी दशा हो जायगी ? और एक दिन यह काया ढल जायगी ?" उनका चिन्तन चलता रहा । मन में विरक्ति बस गई । उन्होंने सोचा--"अब शेष जीवन को सुधार कर मुक्ति का मार्ग ग्रहण कर लेना ही उत्तम है।" वे उदासीनता पूर्वक रहने लगे। • कविवर श्री सूर्यमुनिजी म. की रामायण के अनुसार । श्री हेमचन्द्राचार्य ने यहाँ 'चैत्योत्सव का स्नात्र-जम' बतलाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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