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नारद की करतूत - जनक का अपहरण
सीता के सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर, वे उसे देखने को चल दिये और मिथिला जा पहुँचे । अन्तःपुर में वे सीता की खोज करने लगे। लंगोटीधारी, दण्ड और छत्र लिये हुए, कृशकाय नारदजी को अपनी ओर आता हुआ देख कर सीता डरी और माता को सम्बोधन करती हुई गर्भागार में चली गई । सीता का तीव्र स्वर सुनते ही अनेक दासियां दौड़ी आई। द्वारपाल भी आ गए। उन्होंने विद्रूप नारद को पकड़ा और धक्का देते हुए अन्तःपुर के बाहर कर दिया।
नारदजी की सभी राज्यों में प्रतिष्ठा थी, आदर-सत्कार था। वे ब्रह्मचारी और विश्वस्त थे । अन्तःपुर में जाने की उन्हें स्वतन्त्रता थी। वे इच्छित स्थान पर बिना किसी रोक के जा सकते थे। मिथिला में वे बहुत दिनों के बाद आये थे और अन्तःपुर में उनका यह आगमन, सीता और दास-दासियों के लिए प्रथम ही था। इसलिए उनका वहाँ तिरस्कार हुआ। नारदजी क्रुद्ध हो गए। उनका क्रोध, बिना विग्रह खड़ा किये, शान्त नहीं होता था। वे नगर से चल कर वैताढय गिरि पर आये। उन्होंने सीता का चित्र एक वस्त्र पर बनाया और प्रबल पराक्रमी राजकुमार भामण्डल के पास आकर उसे दिखाया। नारद को विश्वास था कि भामण्डल इस पर मोहित हो कर सीता का अपहरण करेगा । इमसे मेरे आमान का बदला चुक जायगा।
पटचित्र देखते ही भामण्डल मोहमत्त हो गया । वह पटसुन्दरी उसके मन में ऐसी बसी कि खानपान तक छूट गया और एक योगी के समान उसी के ध्यान में लीन हो गया। अचानक पुत्र की ऐसी दशा हो जाने की बात सुन कर चन्द्रगति राजा उसके पास आया और कारण पूछने लगा। भामण्डल तो नीचा मुंह किये बैठा रहा, किंतु उसके मित्रों ने कहा--"यहाँ अभी नारदजा आये थे। उन्होंने भामण्डल को एक सुन्दरी का पट-चित्र दिया। उस चित्र को देखते ही राजकुमार की यह दशा हुई है ।" राजा ने नारदजी से एकांत में पुछा । उन्होंने कहा--" वह चित्र मिथिलेश जनक की राजकुमारी सीता का है । वह मनुष्य रूप में देवांगना है--देवांगना से भी बढ़ कर । मेरे चित्र में उसका पूरा सौंदर्य नहीं आ सका, न मैं अपनी वाणी से उसके सौंदर्य का पूरा वर्णन ही कर सकता। वह अलौकिक सौंदर्य एवं उत्तमोत्तम गुणों की स्वामिनी है । मैंने उसे भामण्डल के योग्य समझ कर उसे उसका पट-चित्र दिया है।"
नारदजी की बात सुन कर राजा ने भामण्डल को विश्वास दिलाते हुए कहा-- "पुत्र ! यह तेरी पत्नी होगी, चिन्ता मत कर मैं यह प्रयत्न करता हूँ। चन्द्रगति ने अपने विश्वस्त 'वद्याधर चपलगति को जनक नरेश का अपहरण कर के लाने की आज्ञा
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