________________
८०
तीर्थकर चरित्र
५ महापद्म निधि - सभी प्रकार के सुन्दर वस्त्रों की प्राप्ति होती है ।
६ काल निधि - - इससे भूत-भविष्य काल का ज्ञान और शिल्प - कृषि आदि का ज्ञान होता है ।
७ महाकाल निधि -- इससे स्वर्ण - रत्नादि की खानों की उत्पत्ति होती है ।
८ माणव निधि - शस्त्र, युद्ध-नीति और दंड-नीति की प्राप्ति होती है ।
९ शंख निधि -- काव्य, नाट्य और वादित्रादि निष्पन्न होते हैं ।
ये नौ निधि चक्रवर्ती के अधीन हुए। ये निधान पुस्तक रूप में, दृढ़ एवं सुरक्षित पेटी में रहते हैं । देव इनकी रक्षा करते हैं । इसका स्थान मागध तीर्थ है। किंतु चक्रवर्ती के पुण्योदय से उन्हें प्राप्त हुए। ये अक्षय-- सदाकाल भरपूर रहने वाले हैं ।
इस प्रकार सर्वत्र अपना शासन चला कर महाराजाधिराज भरतेश्वर, अयोध्या नगरी में पधारे । बड़ा भारी उत्सव मनाया गया और चक्रवर्ती का बड़े भारी आडम्बर से महाराज्याभिषेक किया ।
चक्रवर्ती की द्धि
चक्रवर्ती महाराजाधिराज की ऋद्धि इस प्रकार थी। उनकी आयुधशाला में सर्वोत्तम आयुध-- १ चक्र- रत्न २ छत्र - रत्न ३ दण्ड- रत्न और ४ खड्ग रत्न थे । उनके रत्नागार (लक्ष्मीभंडार ) में -- १ कांकिणी रत्न २ चर्म रत्न ३ मणि रत्न और ४ नो निधान थे । उन्हीं के नगर में उत्पन्न १ सेनापति रत्न २ गाथापति-रत्न ३ पुरोहित-रत्न और ४ वाद्धिकी रत्न – ये चार रत्न थे । वैताद्य पर्वत के मूल में उत्पन्न गज-रत्न हस्तीशाला में और अश्व रत्न अश्वशाला में तथा विद्याधर की उत्तम श्रेणी में उत्पन्न स्त्री - रत्न उनके विशाल अन्तःपुर में था ।
1
सोलह हजार देव उनकी सेवा में थे । बत्तीस हजार राजा उनके अधीन थे । उनकी भोजनशाला के लिए ३६३ प्रधान रसोईदार थे। इनमें से प्रत्येक को रसोई बनाने का अवसर वर्षभर में एक दिन ही आता था । उनकी सेना में चोरासी लाख हाथी, चोरासी लाख घोड़े, चोरासी लाख रथ, छियानवे करोड़ पदाति सैनिक थे ।
राज्याभिषेक के बाद भरतेश्वर अपने सम्बन्धियों से मिले । उस समय वे अपनी बन सुन्दरी के दुर्बल शरीर को देख कर दुखित हुए। राजभगिनी सुन्दरी को जब दीक्षा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org