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________________ तीर्थकर चरित्र भोगोपभोग परिमाण व्रत-भोगोपभोग (खान-पान आदि में काम में आने वाली वस्तुओं) का शक्ति के अनुसार परिमाण रख कर शेष का त्याग कर देना, यह दूसरा गुणव्रत है। ___अनर्थदण्ड त्याग-१ आर्त और रौद्र, ये दो 'अपध्यान' हैं, इनका आचरण २ पापकर्म का उपदेश ३ हिंसक अधिकरण (शस्त्रादि) देना तथा ४ प्रमाद का आचरण करना, यह चार प्रकार का अनर्थ-दण्ड है । शरीरादि तथा कुटुम्ब-परिवारादि के लिए हिंसादि पाप किये जायँ, वे 'अर्थदण्ड ' हैं। इस के अतिरिक्त अनर्थ-दण्ड है । इस अनर्थदण्ड का त्याग करना तीसरा गुणव्रत है। सामायिक व्रत--आर्त-रौद्र ध्यान तथा सावद्य-योग का त्याग कर के मुहूर्त (दो घड़ी) तक समताभाव धारण करना-सामायिक नाम का प्रथम शिक्षा व्रत है। देशावकाशिक-दिग्व्रत (छठे व्रत) में दिशा का जो परिमाण किया है, उसमें दिन और रात्रि संबंधी संक्षेप करना, तथा अन्य व्रतों को भी संक्षेप करना दूसरा गुणव्रत है । पौषधव्रत--चार पर्व दिन (अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा--ये चार तथा दूसरे पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी यों कुल छह) में उपवासादि तप करना, कुव्यापार (सावध व्यापार) का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और स्नानादि क्रिया का त्याग करना 'पौषध व्रत' नाम का तीसरा शिक्षा व्रत है। अतिथिसंविभाग व्रत--अतिथि (मुनि) को चार प्रकार का आहार, वस्त्र, पात्र और स्थानादि का दान करना । यह चौथा शिक्षा व्रत है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस प्रकार रत्न त्रय की सदैव आराधना करना चाहिए। आदि तीर्थकर भगवान् ऋषभदेवजी ने केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद, प्रथम धर्मदेशना दी। इससे प्रतिबोध पा कर ऋषभसेन आदि सैकड़ों भव्यात्माएँ असार संसार का त्याग कर मोक्षमार्ग पर अग्रसर हुई। धर्म-प्रवर्तन भगवान की परम पावनी धर्मदेशना सुन कर उसी समय भरत महाराज के ऋषभ. सेन आदि पाँच सौ पुत्र और सात सौ पौत्रों ने संसार मे विरक्त हो कर मुनि-दीक्षा ग्रहण की। भगवान् के केवलज्ञान का देवों द्वारा किये हुए महोत्सव से प्रभावित हो कर भरत महाराज के पुत्र ‘मरिचि' ने भी संयम स्वीकार किया और भरत महाराजा की भाज्ञा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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