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तीर्थङ्कर चरित्र
समय समझदार प्राणी रात की सुखमय नींद में पड़े रहने का प्रमाद नहीं करते । वे जानते हैं कि यदि रात के समय सोते रहे, तो दिन की भयंकर गर्मी में, अग्नि के समान धधकती हुई रेती पर चलना महान् कष्टकर होगा।
___अनेक जीक्योनि रूप संसार समुद्र में गोते लगाते हुए जीव को उत्तम रत्न के समान मनुष्य-जन्म की प्राप्ति होना महान् कठिन है। जिस प्रकार दोहला * पूर्ण करने से वृक्ष फलदायक होता है, उसी प्रकार परलोक की साधना करने से प्राणियों का मनुष्य-जन्म सफल होता है । जिस प्रकार दुष्टजन मीठे वचनों से मोहित कर के लोगों को ठग लेते हैं, उनकी मीठी वाणी, परिणाम में दुःखदायक होती है, उसी प्रकार इन्द्रियों के मोहक विषय पहले तो मधर लगते हैं, किंतु उनका परिणाम महान् दुःखप्रद होता है । जिस प्रकार बहुत ऊँची पहुँची हुई वस्तु अंत में नीचे गिरती है, उसी प्रकार अनेक प्रकार का प्राप्त हुभा सुखद संयोग, अन्त में वियोग दुःख में ही परिणत होता है। मनुष्यों को प्राप्त हुआ धन, यौवन और आय, ये सभी नाशवान् हैं। जिस प्रकार मरुस्थल में स्वादिष्ट जल का झरना नहीं होता, उसी प्रकार चतुर्गतिमय संसार में भी सुख नहीं होता। क्षेत्र-दोष से और परमाधामी देवों की असह्य मार से, दारुण दुःखों को भोगने वाले नारकों के लिए सुख तो है ही कहाँ ?
शीत, ताप, वायु और जल से तथा वध, बन्धन और क्षुधादि विविध प्रकार से पीडित, तिर्यञ्च जीवों को भी कौन-सा सुख है ?
___ गर्भावास, व्याधि, जरा, दरिद्रता और मृत्यु के दुःखों से जकड़ा हुआ मनुष्य भी सुखी नहीं है।
पारस्परिक मात्सर्य, अमर्ष, कलह तथा च्यवन (मरण) आदि दुःखों के सद्भाव में भी क्या देवी-देवता सुखी माने जा सकते हैं ?
इस प्रकार चारों गतियों में दुःख ही दुःख भरा हुआ है, फिर भी अज्ञानी जीव, पानी की नीची गति के समान संसार की ओर ही झुकते हैं। इसलिए हे भव्य जीवों ! जिस प्रकार सांप को दूध पिलाने से विष की वृद्धि होती है, उसी प्रकार मनुष्य-जन्म का दुरुपयोग करने से दुःखों की वृद्धि होती है। अतएव इस मनुष्य जन्म रूपी दूध के द्वारा संसार रूपी विष की वृद्धि नहीं करनी चाहिए।
हे विवेकशील प्राणियों ! इस संसार-निवास में उत्पन्न होते हुए अनेक प्रकार के
• बकुल आदि कई प्रकार की वनस्पति ऐसी होती है कि जिनके अनुकूल क्रिया होने पर प्रफुल्लित एवं फलयुक्त होती है।
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