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- तीर्थङ्कर चरित्र
का भी वैसा ही विचार जाना और उसमें राजकुमारी की इच्छा का संकेत मिला, तो महारानी ने महाराज को बुला कर कहा। महाराज ने सेठ को बुला कर सम्बन्ध जोड़ लिया और धूमधाम से वीरभद्र के लग्न, राजकुमारी अनंगसुन्दरी के साथ हो गये । वीरभद्र ने राजकुमारी को जैनधर्म का स्वरूप समझा कर जिनोपासिका बना ली। कालान्तर में वीरभद्र, पत्नी सहित अपने घर आने के लिए रवाना हुआ। समुद्र मार्ग से चलते हुए महावायु के प्रकोप से वाहन टूट गया और सभी यात्री समुद्र के जल में डूबने-उतराने लगे। कई डूब भी गये । अनंगसुन्दरी के हाथ में जहाज का टूटा हुआ पटिया आ गया। वह पटिये के सहारे तैरती हुई किनारे लग गई। वह भूखी प्यासी और थकी हुई मूच्छित अवस्था में किनारे पर पड़ी थी । समुद्र के निकट किसी तापस का आश्रम था। घूमते हुए तापसकुमार को किनारे पर पड़ी हुई अनंगसुन्दरी दिखाई दी। उसने उसे सावचेत की और अपने आश्रम पर ले आया। आश्रम के कुलपति ने अनंगसुन्दरी को सान्तवना दी और पुत्री के समान तपस्विनियों के साथ रहने की व्यवस्था कर दी। थोड़े ही दिनों में अनंगसुन्दरी स्वस्थ हो गई। उसके आकर्षक रूप एवं लावण्य को देख कर, कुलपति ने विचार किया कि-- 'इस युवती का आश्रम में रहना हितकर नहीं होगा। आश्रम के तपस्वियों की समाधि को स्थिर रखने के लिए, इस सुन्दरी को यहाँ से हटाना आयश्यक है ।' उसने अनंगसुन्दरी को बुला कर कहा;
__ "वत्से ! यहाँ से थोड़ी ही दूर पर 'पद्मिनीखंड' नगर है । वहाँ बहुत-से धनवान् लोग रहते हैं । उस नगर का सम्बन्ध भारत के दूर-दूर के प्रांतों से है । वहाँ रहने से तुझ तेरे पति का समागम अवश्य होगा। इसलिए तुम वहाँ जाओ।"
अनंगसुन्दरी एक वृद्ध तापस के साथ पद्मिनीखंड नगर के निकट आई । तापस उसे नगर के बाहर छोड़ कर चला गया। वह नगर में प्रवेश करने के लिये आगे बढ़ी. तो उसे स्वडिल भूमि जाती हुई साध्वियां दिखाई दीं। अनंगसुन्दरी ने सोचा--'ये साध्वियां तो वैसी ही है, जैसी मेरे पति ने मुझे बताई थी।' वह साध्वियों के निकट आई । उसने प्रवर्तिनी महासती सुव्रताजी आदि को नमस्कार किया और उनके साथ उपाश्रय में पहुँची। वहाँ तुम्हारी पुत्री प्रियदर्शना ने उसे देखी । अनंगसुन्दरी ने सुव्रताजी और प्रियदर्शना को अपना वृत्तांत सुनाया। उसकी कथा सुन कर प्रियदर्शना ने कहा--
“सखो ! तेरे पति वीरभद्र की वय और कला आदि की सभी विशेषताएँ मेरे पति वीर भद्र से बराबर मिलती हैं । किंतु मात्र वर्ण में अन्तर है । तेरे पति का वर्ण श्याम है और मेरे पति का गौर वर्ण है । बस, यही अंतर है, शेष सभी बातें मिलती हैं।"
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