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प० अरनाथजी -- वीरभद्र का वृत्तांत
- " में कैसा बताऊँ ? सर्वगुण सम्पन्न । सब, तुम्हारे जैसा, जिसे पा कर में संतुष्ठ हो जाऊँ ।”
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- " मेरे जैसा ? क्या आप मुझे सर्व गुण सम्पन्न एवं पूर्ण योग्य मानती हैं ?" --" अरे वीरमती ! यदि तू पुरुष होती, तो मैं तुझ ही को पति वरण करती । परन्तु अब मैं तुझे अपने साथ ही रखना चाहती हूँ।"
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-" राजकुमारीजी ! यदि आपकी यही इच्छा है, तो में आपके लिए पुरुष बन जाऊँ । फिर तो आप प्रसन्न होगी न ?” --- वीरभद्र ने हँसते हुए कहा ।
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-~"चल हट ! वेश बदलने से ही कोई पुरुष हो सकता है ?" राजकुमारी ने हँसते हुए कहा ।
"अरे, आप क्या समझती हैं मुझे ? मैं वह कला जानती हूँ कि जिस के प्रयोग से सदा के लिए पुरुष बन जाऊँ पूर्ण पुरुष ।"
'हँसी मत कर ! जन्म से स्त्री हुई, तो अब पुरुष कैसे बन सकती है ?"
'मैं आपके लिए अपना जीवन पूर्णरूप से अभी परिवर्तित कर सकती हूँ-
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यहीं ।
अनंगसुन्दरी को आश्चर्य हुआ। वह सोच रही थी कि रूप परिवर्तन कर के स्त्री, पुरुष का वेश तो धारण कर सकती है, किन्तु वह स्वयं पूर्णरूप से पुरुष कैसे बन सकती है ? उसे विश्वास नहीं हो रहा था। राजकुमारी को असमंजस में पड़े देख कर वीरभद्र ने कहा-
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'महाभागे ! अविश्वास क्यों करती हो । मैं अभी पुरुष बन कर तुम्हें दिखा देता हूँ । आवश्यकता मात्र पुरुष के कपड़ों की है यह शरीर तो जन्म से ही पुरुष है । पुरुष रूप ही जन्मा और पुरुष रूप में ही पहिचाना जाता हूँ। मेरा नाम 'वीरमती' नहीं, 'वीरभद्र' है । में विनयवती की बहिन नहीं, भाई हूँ । तुम्हें देखने के लिए मैने स्त्रीवेश धारण किया है ।"
वीरभद्र की बात सुन कर राजकुमारी अत्यंत हर्षित हुई । वीरभद्र ने कहा-" अब मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगा । अब तुम महाराज से कहला कर अपना वैवाहिक सम्बन्ध जुड़े वैसा प्रयत्न करना । "
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राजकुमारी ने वीरभद्र को प्रसन्नता पूर्वक बिदा किया। इसके बाद राजकुमारी ने अपनी सखी के द्वारा, अपनी माता के पास ( सखी के परामर्श के रूप में ) सन्देश भेजा । महारानीजी ने भी महाराज से वीरभद्र की प्रशंसा सुनी थी । जब राजकुमारी की सखी
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