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भ• शांतिनाथजी--महाराजा कुरुचन्द्र का पूर्वभव
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बरात ले कर आ गया है । यह देख कर वह एकदम निराश हो गया और शीघ्रता से भाग कर नगर बाहर एक उद्यान में आया । वह एक वृक्ष पर चढ़ गया और उसकी डाल पर रस्सी बाँध कर, गले में फन्दा डालना ही चाहता था कि लतागृह में से एक मनुष्य निकला और फन्दा काटते बोला;--
__ " अरे ओ साहसी ! यह क्या कर रहे हो ? मरने से क्या होगा? ऐसा दुष्कृत्य कर के मनुष्य भव को समाप्त नहीं करना चाहिए। शान्त होओ और समझबूझ से काम लो।"
____ वसंतदेव चौंका । उसने कहा--" महानुभाव ! मैं हताश हो गया हूँ। मेरी प्रिया मुझे प्राप्त नहीं हो कर दूसरे को दी जा रही है । अपने मनोरथ में सर्वथा विफल रहने के बाद जीवित रहने का सार ही क्या है ? मृत्यु से तो मैं इस दुःख से मुक्त हो जाऊँगा। दुःख से मुक्त होने के लिए मैं मर रहा था। आपने इसमें विघ्न खड़ा कर दिया।" इस प्रकार कह कर उसने अपने मरने का कारण बताया। वसंतदेव की बात सुन कर वह पुरुष बोला--
भद्र तेरा दुःख तो गहरा है, किन्तु मरना उचित नहीं है। मर कर तू क्या प्राप्त कर लेगा? यदि जीवित रहेगा, तो इच्छित कार्य की सिद्धि के लिए कुछ प्रयत्न कर सकेगा। यदि प्रयत्न सफल नहीं हो, तो भी मरना उचित नहीं है । इस प्रकार मरने से बुरे कर्मों का बन्ध होता है और दूसरी गति में चले जाने से प्रिय के दर्शन से भी वंचित हो जाता है । में स्वयं भी दुःखी हूँ। मेरी इच्छित वस्तु प्राप्त होने योग्य होते हुए भी उपाय के अभाव में भटक रहा हूँ-इसी आशा पर कि जीवित रहा, तो कभी सफल हो सकूँ। मैं अपनी बात तुझे सुनाता हूँ।"
"मैं कृतिकापुर का रहने वाला हूँ और मेरा नाम कामपाल है । मैं देशाटन के लिए निकला था। घूमता हुआ शंखपुर आया। वहाँ यक्ष का उत्सव हो रहा था। मैं भी उत्सव देखने गया । वहाँ मुझे एक सुन्दर युवती दिखाई दी। मैं उसके सौन्दर्य को स्नेहयुक्त निरखता ही रहा । उस युवती ने भी मुझे देखा । वह भी मुझे देख कर मुग्ध हो गई। उसने मेरे लिए अपनी सखी के साथ पान भेजा । पान ले कर बदले में कुछ देने की बात मैं सोच ही रहा था कि इतने में एक उन्मत्त हाथी, स्तंभ तुड़ा कर भागता हुआ उस कन्या की ही ओर आया। भयभीत हो कर उस सुन्दरी का सारा परिवार भाग गया। वह युवती भयभ्रान्त एवं दिग्मूढ़ हो कर वहीं खड़ी रही । हाथी उसे सूंड से पकड़ने ही वाला था कि मैने हाथी के मर्मस्थान पर लकड़ी से चोट की। उस चोट से वह हाथी मेरी ओर घुमा। किन्तु में तत्काल चतुराई से हाथी को भुलावे में डाल कर और उस
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