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________________ ३५४ - तीर्थङ्कर चरित्र प्रियंकरा ने पुष्पादि ग्रहण कर वसंतदेव को देते हुए कहा--" लीजिए, मेरी स्वामिनी की ओर से यह प्रेमपुष्प स्वीकार कीजिए ।" वसंतदेव ने सोचा - यह युवती भी मुझे चाहती है।' उसने पुष्पादि भेंट स्वीकार की और अपने नाम की अंगूठी देते हुए कहा--- आपकी सखी को मेरी यह तुच्छ भेंट दे कर कहो कि--" वे मुझ पर अपना पूर्ण एवं अटूट स्नेह रखे और ऐसी चेष्टा करे कि जिससे दिनोदिन स्नेह बढ़ता रहे।' " केसरा यह बात सुन कर बड़ी प्रसन्न हुई । उसने बड़े आदर के साथ अंगूठी ग्रहण की । रात को वह इन्हीं विचारों को लिए सी गई । स्वप्न में उसने वसंतदेव के साथ अपनी लग्न-विधि होती हुई देखी । वह हर्षावेश में रोमांचित हो गई । प्रातःकाल होने पर उसने अपने स्वप्न की बात प्रियंकरा से कही । इसी प्रकार का स्वप्न वसंतदेव ने भी देखा । प्रातःकाल होने पर प्रियंकरा ने वसंतदेव के पास जा कर केसरा के स्वप्न की बात सुनाई । वसंतदेव को निश्चय हो गया कि अब मेरे मनोरथ सिद्ध हो जावेंगे। उसने प्रियंकरा का सत्कार किया । अब प्रियंकरा दोनों के सन्देश लाती ले जाती थी । इस प्रकार दोनों का काल व्यतीत होने लगा । एक बार वसंतदेव को पंचनन्दी सेठ के यहाँ से मंगल बाजे बजने की ध्वनि सुनाई दी । वह चौंका। पता लगने पर मालूम हुआ कि पंचनन्दी सेठ की पुत्री केसरा का सम्बन्ध, कान्यकुब्ज के निवासी सुदत्त सेठ के पुत्र वरदत्त के साथ हुआ है । इसी निमित्त वादिन्त्र बज रहे हैं । यह सुनते ही वसंतदेव हताश हो गया। किन्तु उसी समय प्रियंकरा आई और कहने लगी; 46 'आप घबड़ाइये नहीं । मेरी सखी ने कहलाया है कि मेरे पिताजी ने मेरी इच्छा को जाने बिना ही जो यह सम्बन्ध किया है, वह व्यर्थ रहेगा । आप ही की बनूँगी। यदि मेरा मनोरथ सफल नहीं हुआ, तो में प्राण त्याग दूंगी, परन्तु आपके अतिरिक्त किसी दूसरे से लग्न नहीं करूँगी । आप मुझ पर पूर्ण विश्वास रखें।" Jain Education International प्रियंकरा की बात सुन कर वसंतदेव को संतोष हुआ । उसने भी कहा कि ' में भी केसरा के लिए ही जीवित रहूँगा । यदि केसरा मेरी नहीं हो कर दूसरे की बनेगी, तो में भी प्राण त्याग दूंगा ।' इस प्रकार दोनों का कुछ काल व्यतीत हुआ, किंतु उनका मनोरथ सफल नहीं हो रहा था। एक दिन वसंतदेव ने देखा कि केसरा के साथ लग्न करने के लिए वरदत्त -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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