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________________ तीर्थङ्कर चरित्र सुन्दरी उठा कर निर्विघ्न स्थान पर चला गया। थोड़ी देर में उसका परिवार भी वहाँ आ गया और मुझे सुन्दरी ‘मदिरा' का रक्षक जान कर, सभी मेरी स्तुति करने लगे। उधर मदिरा की सखियें उसे पुन: आम्रकुंज में ले गई । किन्तु वहाँ भी हाथी के उपद्रव से हलचल हुई और भगदड़ मची। इससे सभी बिखर कर इधर-उधर हो गए। खोज करने पर भी मैं उस सुन्दरी को नहीं पा सका और भटकता हुआ यहाँ आया। तुम्हारा दुःख समान है । प्रयत्न करने पर सफलता मिल सकती है। मैं तुम्हें एक उपाय बतलाता हूँ। रीति के अनुसार, तुम्हारी प्रिया केसरा, लग्न के पूर्व कामदेव की पूजा करने के लिए आवेगी ही। अपन दोनों कामदेव के मन्दिर में छिप जावें । जब केसरा आवे, तो उसके वस्त्र, मैं पहन कर केसरा के रूप में चला जाऊँगा और तुम केसरा को ले कर दूर चले जाना । इस प्रकार तुम्हारा कार्य सरलता से सफल हो जायगा।" वसंतदेव को इस बात से संतोष हुआ। उसने इस योजना को क्रियान्वित करने का निश्चय किया, किन्तु इसमें रहे हुए खतरे का विचार कर के वह चौंका। उसने पूछा-" महानुभाव ! फिर आप उस जाल से कैसे निकलेंगे?" ___ "मैं अपने बचाव की युक्ति निकाल लूंगा । मुझे आशा है कि तुम्हारा काम सफल होते ही मेरा काम भी बन जायगा । फिर तुम भी तो मुझे सहायता करोगे?" दोनों प्रसन्न हो कर वहां से बाजार में आ गए और संध्या के समय कामदेव के मन्दिर में जा कर छुप गए । थोड़ी देर में केसरा भी गाजे-बाजे के साथ वहाँ आई । नियम के अनुसार उसकी सखियां मन्दिर के बाहर ही रुक गई और वह अकेली पूजा की थाल ले कर मन्दिर में आई । उसने द्वार बन्द कर दिए और देव को नमस्कार करती हुई बोली;-- "देव ! यह मेरे साथ कैसा अन्याय करते हो ? आप तो सभी प्रेमियों के मनोरथ पूरे करने वाले हो, फिर मैं ही निराश क्यों रहूँ? मैने आपका क्या अपराध किया ? यदि आप मुझ पर अप्रसन्न ही हैं, तो मैं अपनी खुद की बलि आपके चरणों में चढ़ाती हूँ। इससे प्रसन्न हो कर मुझे अगले भव में वसंतदेव की अर्धांगना बनाना।" इतना कह कर वह गले में पाश डालने लगी। यह देख कर छुपे हुए वसंतदेव और कामपाल बाहर निकले । केसरा यह देख कर चौंकी और स्तब्ध रह गई। किन्तु क्षणभर के बाद ही वह हर्षातिरेक से उत्फुल्ल हो गई । उपने अपना वेश उतार कर कामपाल को दिया । कामपाल केसरा का वेश पहन कर बाहर निकला और पालकी में जा बैठा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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