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________________ तीर्थङ्कर चरित्र "पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व-भरत क्षेत्र में संघपुर नाम का एक बड़ा नगर था । वहाँ राज्यगुप्त नाम का एक गरीब कुलपुत्र रहता था। वह दूसरों की मजदूरी कर के पेट भरता था । उसके शंखिका नाम की पतिभवता पत्नी थी। वे दोनों मजदूरी कर के आजीविका चलाते थे । एक बार वे दोनों पति-पत्नी फल लेने के लिए वन में गये । वहाँ उन्हें मुनिराज सर्वगुप्तजी धर्मोपदेश देते हुए दिखाई दिये । वे भी धर्मसभा में बैठ गए और उपदेश सुनने लगे । उपदेश पूर्ण होने के बाद उन्होंने मुनिराज से निवेदन किया कि - " हम गरीब हैं। हमें ऐसी तप-विधि बताइए कि जिससे हमारे पाप कर्मों का विच्छेद हो ।" मुनिराज ने उन्हें सम्यग् तप का उपदेश दिया । वे घर आ कर तप करने लगे । तप के पारणे के दिन वे किसी उत्तम त्यागी संत की प्रतीक्षा करने लगे । इतने में मुनिश्वर घृतिधरजी भिक्षाचारी के लिए पधारे। उन्होंने उन्हें भावपूर्वक प्रतिलाभित किये। कालान्तर में श्रीसर्वगुप्त मुनिराज वहाँ पधारे। प्रतिबोध पा कर दोनों ने श्रमणदीक्षा स्वीकार कर ली। राजगुप्त मुनि ने गुरु की आज्ञा से आयंबिल वर्द्धमान तप किया और अंत में अनशन कर के ब्रह्मदेवलोक ३४० गए। वहाँ सेव कर यह सिंहस्थ हुआ और शंखिका भी संयम तप की आराधना कर के ब्रह्मलोक में देव हुई । वहाँ से च्यव कर वह सिंहरथ की पत्नी हुई । अब यहाँ से अपने नगर में जावेंगे और पुत्र को राज्यभार सौंप कर मेरे पिताश्री के पास दीक्षा लेंगे । फिर चारित्र की विशुद्ध आराधना कर के मोक्ष प्राप्त करेंगे । उपरोक्त वचन सुन कर महाराजा सिंहथजी ने महाराजा मेघरथजी को नमस्कार किया और राजधानी में आ कर पुत्र को राज्य का भार दिया । फिर भगवान् धनरथजी के पास प्रव्रजित हो कर सिद्धपद को प्राप्त हुए । यह सब बात देवरमण उद्यान में होती रही । इसके बाद महाराजा मेघरथजी उद्यान में से चल कर राजभवन में आये । कबूतर की रक्षा में शरीर-दान एक दिन महापराक्रमी दयासिन्धु महाराजा मेघरथजी पोषधशाला में पौषध अंगीकार कर के बैठे थे और जिनप्ररूपित धर्म का व्याख्यान कर रहे थे । उस समय एक भयभीत कबूतर आ कर उनकी गोद में बैठ गया । वह बहुत ही घबड़ाया हुआ था और काँप रहा था । उसका हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था । वह मनुष्यों की बोली में करुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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